शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2017

CM बनने की इनसाइड स्टोरी


बालकाल्य में समाज के सरोकार को छोड़ कर संत बनना आसान नहीं था...क्योकि संत का जीवन कठिन तपस्या और साधना से गूथकर बनता है.... संत से महंत और महंत से मुख्यमंत्री का सफर भी आसान नहीं था....योगी आदित्यनाथ बस एक नाम नहीं है....बल्कि अपनेआप में एक सफर है....जिसमें कई मोड आए....जिन मोडों पर कभी अपनों को उन्होने छोड दिया तो कभी परायों को अपना बना लिया.....केसरिया रंग रंग के परिधान और चहरे पर काले चश्में के साथ जब ये चहरे चुनावी सभाओं में पहुंचता था...तो विरोधियों के जबड़े और ज़ुबान शब्दों का साथ छोड़ देते थे...। यूपी विधानसबा चुनावों के स्टार प्रचारक और हिंदुत्व के मौजूदा सबसे बड़े चहरे योगी आदित्यनाथ की ज़िंदगी की कहनी भी बड़ी दिलचस्प है...। कहने को तो योगी आदित्यनाथ खुली किताब की तरह है...लेकिन आदित्याथ योगी की ज़िंदगी के कई अध्याय और कई पन्ने ऐसे हैं...जन्हें ना कोई समझ सका और ना ही कभी योगी ने किसी से साझा किए...। यानि योगी की ज़िंदगी कि किताब में आज भी कई पन्ने ऐसे हैं...जो अनदेखे हैं...अनसुने हैं..अनसुलझे हैं...या मुड़े हुए हैं..। और अगर खुले भी हैं...तो बहुत सीमित...। आज हम योगी आदित्यनाथ के उन्ही अनकहे...और अनसुने पन्नों की दास्तान आपको सुनाते हैं...। बचपन अजय की अजेय गाथा आपको सुनाते हैं...।  पहाड़ से निकला एक नौजवान जब गोरखपुर के गोरक्षनाथ मंदिर पहुंचा...तो किसी को नहीं पता था...कि गणित का गदाधारी ये नौजवान एक दिन हिंदुस्तान के सबसे बड़े सूबे का सीएम बनेगा...। किसी ने नहीं सोचा था कि उत्तराखंड के उत्तरकाशी में जन्में अजय सिंह बिष्ट एकदिन हिंदू अस्मिता और लाखों लोगों की आवाज़ बनेगा...। मंदिर में रहने वाला एक सन्यासी लोगों की समस्याओं की चादर खुद ओढ़ लेगा...वो जनता का प्रतिनिधित्व दिल्ली तक करेगा...वो उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनेगा....।  बुलंदी पर पहुंचने के बाद आजरण में साधारण बने रहने की कला आसान नहीं होती...खुद को तमाम तामझाम से दूर रखना आसान नहीं होता...सुख सुविधाओं से इतर पहले जैसा बने रहना आसान नहीं होता...लेकिन जो इन सब पर विजय पा ले...जो इन सब को काबू में कर ले...जो जनसेवा के सबसे बड़ा धर्म समझ ले....उसे ही तो योगी कहते हैं...कर्मयोगी कहते हैं...योगी आदित्यनाथ कहते हैं...। कहते हैं...कि पूत के पांव पालने में नज़र आ जाते हैं...। तो योगी की कुछ कर दिखाने की छवि..तेज तर्रार अंदाज़...तीव्र और तीक्ष्ण बुद्धी...उनके छात्र जीवन से ही..उनमें दिखनी शुरू हो गई...। लेकिन कहते हैं..कि पत्थर को तराशने के लिए एक जौहरी की ज़रूरत होती है...तो देवभूमि उत्तराखंड के पंचूर गांव से निकलकर योगी ने साल 1994 में गोरक्षनाथ मंदिर के महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा ली...और यही से पौड़ी के होनहार अजय सिंह बिष्ट के योगी आदित्यनाथ बनने की कहानी शुरू होती है...और शुरू होता है...उस पत्थर को तराशने का काम..जो आगे चलकर मंहत योगी आदित्यनाथ बना...और सत्ता के ज़रिये समाज सेवा को अपना शीर्ष बना लिया...। जिस वक्त योगी आदित्यनाथ को जनता का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला मिला...उस समय वो सिर्फ 36 साल के थे...और लोकसभा में गोरखपुर की जनता का लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले सबसे कम उम्र के तेज़तर्रार सांसद बने....। इसके बात तो मानों जनता ने योगी को सिर आंखों बैठा लिया..जीत की सिलसिला योगी ने 26 साल की उम्र में शुरू किया था...फिर कभी नहीं थमा...योगी आदित्यनाथ 1999, 2004, 2009 और 2014 में भी लगातार सांसद चुने जाते रहे....। इस बुलंदी पर पहुंचने के बावजूद योगी ने अपने पैर कभी ज़मीन नहीं उठाए...हमेशा की तरह इनका जनता दरबार उनके मंदिर प्रांगण में लगता रहा...फरियादी कभी भी निराश होकर नहीं लौटे...। योगी की ज़िंदगी में सबसे बड़ा तूफान उस समय आया है...जब सितंबर 2014 में उनके गुरू महंत अवैद्यनाथ ने प्राण त्याग दिए...। मंदिर की ज़िम्मेदारी और सियासत की सार संभाल सब कुछ योगी के कंधों पर आ गई...लेकिन जनसेवा का भाव अंदर पाले बैठे इस महायोगी ने कबी हार नहीं मानी...।  योगी आदित्यानाथ उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का संकल्प लेकर उतरे हैं..उत्तम प्रदेश यानि ऐसा प्रदेश...जहां क़ानून व्यवस्था टाइट..महिलाओं और लड़कियों की पूरी सुरक्षा..सड़के गढ्ढा मुक्त..सबको रोज़गार..देने का सपना...27 दिन में बहुत कुछ योगी ने ऐसा किया है..जिससे उत्तम प्रदेश की नींव पड़ती दिखती है... प्रदेश में 16 विधानसभा का चुनाव प्रचार पूरे शबाब पर था...। सूबे की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी समेत तमाम राजनीतिक दलों ने अपने-अपने सारे घोड़े खोल रखे थे...। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव केंद्र में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी पर लगातार हमले बोल रहे थे...। तो उत्तर प्रदेश में अपना 14 साल का सूखा समाप्त करने के लिए बीजेपी भी जी तोड़ मेहनत कर रही थी...प्रदानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मोर्य, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और हिंदुवादी छवि के फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ पूरे यूपी में बीजेपी के पक्ष में माहौल बना रहे थे...। लेकिन बीजेपी की हालत 6ठें और सातवें चरण में खराब होते देख...दिल्ली में अमित शाह ने आपात बैठक बुलाई...। बीजेपी नेताओं ने उसके बाद दिल्ली और लखनऊ का फासला कम कर दिया...दिन रात एक दिया...4 मार्च को सातों चरणों का मतदान संपन्न हो चुका था...। और बीजेपी करीब-करीब सूबे में अपनी जीत तय मान रही थी...।  मार्च की शाम से ही प्रदेश में राजनीतिक पार्टियों की मेहनत के नतीजे एग्ज़िट पोल्स में दिखने लगे थे...। बीजेपी को सभी सर्वे में भारी बढ़त मिल रही थी....। सूबे में बीजेपी नेता केसरिया होली खेलने के लिए पूरी तरह से तसल्लीबख्स हो चुके थे...। 9 और दस मार्च को कयास बाज़ी के ऐसे दौर चले की सूबे की तमाम ख़बरे बीजेपी के पक्ष में आए एग्ज़िट पोल में दबकर रह गई...। 11 मार्च को जैसे सुबह साढ़े 10 बजे पहला नतीजा बीजेपी के पक्ष में आया...। वैसे ही बीजेपी नेताओं ने एक्ज़िट पोल पर मुहर लगानी शुरू दी थी...। शाम तक प्रदेश की सभी 403 सीटों सीटों के नतीजे आ चुके थे...तत्कालीन अखिलेश सरकार पूरी तरह से धराशायी हो चुकी थी और सूबे में बीजेपी का 14 साल का सूखा समाप्त हो चुका था....। बीजेपी 403 में कुल 325 सीटों पर अपना कब्ज़ा जमा चुकी थी...। अब बारी थी...इतने बड़े सूबे का ज़िम्मेदार तय करने की...बीजेपी आलाकमान के सामने चुनौतियां अब भी कम नहीं थीं...। दिल्ली से लखनऊ का सफर मिनटों में सिमय आया था...मुख्यमंत्री का चेहरा तय करने के लिए पार्टी के बड़े नेता बैठकों पर बैठकें किए जा रहे हैं...। पार्टी के कार्यकर्ताओं और मीडिया की कयासबाज़ी के बीच सूबे की सियासत में कई नाम मुख्यमंत्री पद की रेस में तैर रहे थे....। सुरेश खन्ना, सतीश महाना, मनोज सिन्हा, केशव प्रसाद मौर्य, दिनेश शर्मा और ना जाने कितने नाम सीएम की कुर्सी के लिए सामने आ रहे थे...। नेताओं के कार्यकर्ता अपने-अपने नेता के लिए पार्टी अलाकमान पर दबाव बना रहे थे...। इस बीच 17 मार्च 2017 को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शाह ने दिल्ली में एक बैठक बुलाई...। बैठक में बीजेपी के प्रदेश संगठन मंत्री सुनील बंसल और दूसरे अमित और संगठन में दूसरे अमित शाह के नाम से जाने जाने वाले सुनील बंसल ने मुख्यमंत्री को नामों की सूची तैयार की...। नाम तय करने को लेकर अब भी असमंजस की स्थिति बरकरार थी..। काफी माथापच्ची के बाद कोर कमेटी की बैठक में मुख्यमंत्री पद के लिए तीन नाम निकलकर सामने आए । मनोज सिंन्हा और केशव प्रसाद मौर्य को लेकर कोर कमेटी में समहति बन चुकी थी...। दोनों में से किसी के भी नाम किसी को कोई आपत्ति नहीं थी...। बीजेपी पर जनता और कार्यकर्ताओं का दबाव बढ़ता जा रहा था...। उधर 19, 20  और 21 मार्च को कोयम्टूर में संघ की सालाना बैठक बी होनी थी...बीजेपी पर 19 मार्च से पहले सीएम उम्मीदवार तय करने का दोहरा दबाव था....इस बीच 18 मार्च के सुबह फिर दिल्ली में एक बैठक बुलाई गई...। इस बैठक में बीजेपी अलाकमान के अलावा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दो लोगों को बी बुलाया गया...। और सीएम पद पर सस्पेंस समाप्त करने की पूरी कोशिश की गई...। और इसी दिन लगभग सीएम उम्मीदवार पर चला आ रहा सियासी मंथन थम चुका था...।

पिछले 14 साल से उत्तर प्रदेश में बीजेपी की स्थिति बुंदेलखंड के किसान की तरह थी.....अच्छी क्वालटी का बीज भी इस्तेमाल किया गया....खाद...यूरीया के साथ साथ बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने अपने पसीने को पानी की तरह बहाया....लेकिन कभी मेहनत की भरपाई नहीं हो पाई....यूपी की सियासी जमीन पर उतने कमल नहीं खिले जितने की उम्मीद हर बार बीजेपी जताती रही...लेकिन इस बार यूपी की सियासी जमीन पर कमल का पूरा बागीचा सज चुका था....सहयोगी दलों के साथ 325 सीटें बीजेपी ने जीती थीं....लेकिन अब सवाल ये था कि इस बागीचे का माली किसे बनाया जाए....यानि कौन होगा मुख्यमंत्री....और शुरू हुई कसरत...एक ऐसी कसरत जिसने बडे बडे सूरमाओं की सांस फूला दी....दिल्ली से लखनऊ...और लखनऊ से दिल्ली की दूरी चंद मिनटों में बीजेपी के नेता पार करने लगे....मैराथन बैठकों का दौर शुरू हुआ.....बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के सामने दो चुनौती थी...पहली ये कि इस प्रचंड बहुमत में चुनकर आए हर वर्ग के विधायकों को संभाला कैसे जाए....और दूसरी ये कि वो कौन सा चेहरा हो जिस पर संघ हंसते हंसते मुहर भी लगा दे.....इसी बीच फोन की घंटी बजती है....योगी आदित्यनाथ के पास फोन आता है अमित शाह का....कि जल्द से जल्द दिल्ली में अपनी आमद दर्ज कराएं.....योगी मजबूरी बताते हैं कि कई कार्यक्रम लगे हुए हैं...और साथ ही कोई ट्रेन भी नहीं है....लेकिन अमित शाह....योगी की बात को काटते हुए कहते हैं कि कोई नहीं आपके लिए चार्टेड प्लेन की व्यवस्था करा दी जाएगी....आप दिल्ली पहुंचे.. इससे पहले सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल को 5 दिनों के विदेशी दौरे पर जाना था.....जिसमें पहले योगी आदित्यनाथ का नाम भी था....लेकिन प्रचंड बहुमत आने के बाद योगी के नाम पर शीर्ष नेतृत्व की रजामंदी की वजह से उनका नाम इस प्रतिनिधिमंडल से हटा दिया गया था....औऱ इसकी सूचना खुद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दी थी...जिसके बाद योगी आदित्यनाथ अपने सियासी दौरों में व्यस्त हो गए....अमित शाह के फोन आने के बाद 18 मार्च को ही योगी आदित्यनाथ दिल्ली पहुंचे....और अमित शाह से मिले....लेकिन योगी के पहुंचने से पहले ही उनके नाम पर मुहर लग चुकी थी.....लेकिन अमित शाह ने बीजेपी कोर कमेटी बैठक में इस बात की ताकीद सभी को दे दी गई थी....कि यूपी का सिरमौर योगी आदित्यनाथ जरूर हैं....लेकिन इस बात को कांफिडेन्सल ही रखा जाए...कोर कमेटी की बैठक के कमरे औऱ बैठक के दौरान मौजूद लोगों के मन ही सीमित रहे.....क्योकि पार्टी के संविधान के अनुसार चुने हुए विधायक अपना नेता खुद चुनते हैं....जिसको लेकर 18 मार्च की शाम को विधायक दल की बैठक होनी थी...और उसी बैठक के दौरान योगी के नाम पर मुहर लगनी थी...इसी दिन बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को भी दिल्ली तलब किया गया...और इस दौरान उनको योगी के सीएम बनने और उनको उपमुख्मंत्री बनाए जाने की बात भी बता दी गई...जिसके बाद भी केशव प्रसाद मौर्य मीडिया के सवालों के गोलमोल जवाब देते नजर आए.. साथ ही बीजेपी की सिर पर जीत का सेहरा पहनाने में मत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले संगठन प्रभारी सुनील बंसल को इस बात की जिम्मेदारी भी दी गई....कि वो दिनेश शर्मा को सूचित करें कि वो भी उपमुख्यमंत्री हैं...साथ ही कौन कौन से विधायक मंत्रिमंडल में शामिल होंगे उनको भी सूचित करेंगे...सबकी जिम्मेदारियां तय कर दी गई थीं.... इसी बीच 18 मार्च की सुबह कब शाम में बदल गई....कब सूरज सर चढा और कब उतर गया बीजेपी की नेताओं को पता ही नहीं चला...इसी बीच सबकी निगाहें टिकी हुई थी....गाजीपुर से सांसद और मोदी कैबिनेट मंत्री मनोज सिन्हा पर...वक्त बीतता जा रहा था....लेकिन मनोज सिन्हा न ही दिल्ली नहीं पहुंचे और न ही लखनऊ ही आए....इस बीच वो वाराणसी के मंदिरों में मत्था टेकने भी पहुंचे....इसी बीच का एक औऱ दिलचस्प वाकया है....उत्तराखंड में बीजेपी की जीत के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत 18 मार्च को सीएम पद की शपथ लेने वाले थे....त्रिवेंद्र जाति से ठाकुर हैं...और योगी आदित्यनाथ भी ठाकुर हैं...और बीजेपी चाहती थी कि....एक ओर रावत शपथ ग्रहण करें...तो वहीं उत्तर प्रदेश के सिरमौर के तौर पर योगी के नाम के घोषणा कर दी जाए लोकभवन के आसपास चहल कदमी तेज हो गई थी...भगवा कुर्ताधारियों का जमावडा लगाने लगा....लोग लगातार फुसफुसाहट कर रहे थे....कि कौन यूपी का मुख्यमंत्री होगा....कोई बडा नेता इस बारे में बोलने को तैयार नहीं था....और विधायकों से लेकर कार्यकर्ता कंफ्यूजन की स्थिति में थे...यूपी की सियासी हवाओं में कई नाम तय थे....लेकिन कोई भी कुछ भी खुल कर बोल नही पा रहा था....लेकिन हर नाम पर अपने अपने तर्क सभी के पास थे....18 मार्च को जहां एक ओर दिन में दिल्ली में बैठक चल रही थी....तो वहीं उसी वक्त बीजेपी कार्यालय पर योगी आदित्यनाथ के समर्थक भी पहुंच गए थे....और योगी को सीएम बनाए जाने को लेकर नारेबाजी करने लगे....यूं तो बीजेपी के दफ्तर से लोकभवन दूरी पग भर की है...लेकिन बीजेपी के दफ्तर से सीएम के नाम की आवाज नेता सुन नहीं पा रहे थे....और जैसे जैसे वक्त बीतता जा रहा था..... कार्यकर्ता बेचैन होने लगे थे.... इसी बीच घडी की सुईयों ने वो वक्त बता दिया....जिस घडी का सबको इंतजार था....शाम के 6 बज चुके थे.....केन्द्रीय पर्यवेक्षक की भूमिका निभा रहे केन्द्रीय मंत्री वेंकेया नायडू और भूपेद्र यादव लोकभवन पहुंचे......इस दौरान मंच से योगी के नाम के कसीदे पढे जाने लगे....जिससे तस्वीर धीरे धीरे साफ होने लगी कि जो नाम जो चेहरा अगले पांच साल यूपी का भाग्यविधाता होगा वो योगी ही होगा....लेकिन जिस सभागार में ये बैठक हो रही थी..वहां न तो योगी आदित्यनाथ मौजूद थे...न ही केशव प्रसाद मौर्य...और न ही दिनेश शर्मा...क्योकि न ही ये विधानसभा सदस्य थे....और न ही विधापरिषद सदस्य...लेकिन अब भी विधायक दल के नेताओं की मुहर लगनी बाकी थी.....सभी ने अपने अपने तरीके से योगी के इतिहास से लेकर इन चुनावों में योगी की भूमिका की सरहाना की....और फिर जैसे ही मंच से बतौर सीएम योगी आदित्यनाथ के नाम की घोषणा हुई...सभागार में मौजूद सभी विधायक एक सुर में देश में मोदी, प्रदेश में योगी के नारे लगाने लगे....। 19 मार्च की सुबह बीजेपी के लिए यूपी में एक नई सुबह थी...कुछ खास नहीं था इस सुबह में सूरज पूरब से ही निकला था....चिडिय़ा रोजाना की तरह ही चहचहा रही थीं... लेकिन इस चहचहाट के बीच बीजेपी के कार्यकर्ता भी चहचहा रहे थे...सुबह सवेरे ही कांशीराम स्मृति उपवन प्रदेश के आलाधिकारी पहुंच गए थे....क्योकि इसी दिन इसी जगह से योगी आदित्यनाथ सीएम पद की शपथ लेने वाले थे....सूरज अपने परवान पर था....तभी हलचल तेज हो गई....खुद योगी आदित्यनाथ कार्यक्रम का जाय़जा लेने पहुंचे....जिसको देखकर यह तय़ हो गया...कि यूपी को एक ऐसा सीएम मिलने वाला है....जो न बैठेगा न बैठने देगा.....सूरज सर पर था....तैयारियां पूरी हो चुकी थीं.....प्रदेश के राज्यपाल रामनाईक स्मृति उपवन पहुंचे...साथ ही योगी आदित्यनाथ भी स्मृति उपवन पहुंच चुके थे....पूरा उपवन योगी योगी के नाम से गूंज रहा था....मंच पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अलावा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी मौजूद थे.....ये जीत बीजेपी के लिए कितनी महत्वपूर्ण थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है....कि लालकृष्ण अडवाणी के अलावा....बीजेपी शासित प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के अलावा....बीजेपी जिन राज्यों की सरकार में सहयोगी पार्टी है उनके मुख्यमंत्री भी इस पल के गवाह बने और फिर शुरू हुआ योगी का महंत से मुख्यमंत्री बनने का पल....राज्यपाल ने निय़म के अनुसार शपथ पत्र का शुरूआती हिस्सा पढा.....जिसके बाद योगी आदित्यनाथ ने शपथ पत्र को पढना शुरू हुआ....जैसे जैसे शपथ पत्र का हर शब्द वो पढते गए....वैसे वैसे ही योगी योगी की गूंज से पूरा उपवन गुंजायमान हो गया....योगी के साथ ही केशव प्रसाद मौर्या और दिनेश शर्मा ने उपमुख्यमंत्री  पद की शपथ ली...साथ ही 22 कैबिनेट मंत्री, 9 राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार और 13 राज्यमंत्रियों ने शपथ ली.....और फिर शुरू हो गया एक मंहत का मुख्यमंत्री सफरनामा.....जो उत्तर प्रदेश के सियासी इतिहास में अंकित हो गया....जिसे चाह कर भी कोई भूला नहीं सकता...

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