कृष्ण की महिमा के बारे में कौन नहीं जनता.... हर कोइ कृष्ण भगवान को द्वारिकाधीश के नाम से
जानते हैं..... दरअसल भगवान द्वारिका के नरेश थे और इसी कारण उनका नाम द्वारिकाधीश
पड़ा..... आज हम आपको भगवान कृष्ण के होने का ऐसा साबुत देंगे जिसे आपने सिर्फ सुना
होगा.. लेकिन अब आप इसे देख भी सकते है.... भारत के गुजरात में स्थित द्वारका एक
प्राचीन शहर था जो समुद्र में समा गया.... चलिए आज हम आपको द्वारिका के रहस्य के
बारे में बतातें हैं.... भगवान कृष्ण ने अपने पूर्वजों की भूमि को फिर से बसाया था.....
लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि नष्ट हो गई द्वारिका.... किसने किया द्वारिका को नष्ट....
क्या किसी प्राकृतिक आपदा से नष्ट हो गई कृष्ण की द्वारिका.... क्या किसी आसमानी ताकत ने नष्ट कर दिया द्वारिका
को.... या फिर किसी समुद्री शक्ति ने उजाड़ दिया द्वारिका को..... आखिर ऐसा क्या
हुआ कि नष्ट हो गई द्वारिका..... आज हम खोलेंगे इसका रहस्य..... जो आज तक कोई नहीं
जानता..... लेकिन इससे पहले जानने की कोशिश करतें है द्वरिका को लेकर इतिहास क्या
कहता है... मथुरा ने निकलकर भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका में एक नया नगर बसाया..
ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने अपने पूर्वजों की भूमि को फिर से रहने लायक
बनाया था.. लेकिन, बाद में ऐसा क्या हुआ कि द्वारिका नगरी
समुद्र में समा गई.. किसने किया द्वारका को नष्ट? क्या
प्राकृतिक आपदा से नष्ट हुई द्वारका? इस सवालों का जवाब पाने
की कोशिशें अब तक जारी है... समुद्र में हजारों फीट नीचे द्वारका नगरी के अवशेष
मिले हैं।
राजा ययाति के 5
पुत्र थे पुरु, यदु, तुर्वस, अनु और सबसे छोटा द्रुहु.. इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है.. इतिहासकारों
के मुताबिक 7,200 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों पुत्रों का संपूर्ण धरती पर राज था..
पांचों पुत्रों ने अपने-अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की.. यदु से यादव,
तुर्वसु से यवन, द्रुहु से भोज, अनु से मलेच्छ और पुरु से पौरव वंश की स्थापना हुई.. इन पांचों कुल के
लोगों ने आपस में कई प्रसिद्ध लड़ाइयां लड़ी.. जिनमें से महाभारत का युद्ध बेहद
प्रसिद्ध है.. पुराणों में उल्लेख है कि ययाति अपने बड़े बेटे यदु से कुछ
अपेक्षाएं थी जिसके पुरा न होने पर राजा ययाति ने यदु को राज्य से बेदखल कर दिया
और श्राप दिया की तुम और तुम्हारे वंशज अपने पिता के बनाए राज में कभी राज नहीं कर
सकोगे.... इसलिए द्वारिका को उजड़ने का वजह ययाति का श्राप
भी बताया जाता है.. गुजरात राज्य के
पश्चिमी छोर पर समुद्र के किनारे स्थित 4 धामों में से 1 धाम और 7 पवित्र पुरियों में से एक पुरी है
द्वारिका बसा था.. कई द्वारों का शहर होने के कारण द्वारिका इसका नाम पड़ा.. इस
शहर के चारों ओर बहुत ही लंबी दीवार थी जिसमें कई द्वार थे.. वह दीवार आज भी
समुद्र के तल में स्थित है.. भारत के सबसे प्राचीन नगरों में से एक है द्वारिका.. द्वारिका
को द्वारावती, कुशस्थली, आनर्तक,
ओखा-मंडल, गोमती द्वारिका, चक्रतीर्थ, अंतरद्वीप भी कहा जाता है.. द्वारिका को
लेकर एक और बात कही जाती है कि जब कृष्ण ने राजा कंस का वध कर दिया तो कंस के ससुर
मगधपति जरासंध ने कृष्ण और यदुओं का नामोनिशान मिटा देने की ठान ली.. जिसके बाद
जरासंध मथुरा और यादवों पर बारंबार आक्रमण करना शुरू कर दिया.. अंतत: यादवों की
सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कृष्ण ने मथुरा को छोड़ने का निर्णय लिया.. और
कृष्ण अपने पैतृक गांव द्वारिका पहुंच गए जहां वीरान पड़े द्वारिका शहर को फिर से
बसाया.. कहा जाता है कृष्ण अपने 18 नए कुल-बंधुओं के साथ
द्वारिका आ गए जहां 36 साल राज्य करने के बाद उनका देहावसान
हुआ.. द्वारिका के समुद्र में डूब जाने और यादव कुलों के नष्ट हो जाने के बाद
कृष्ण के वंसज वज्रनाभ द्वारिका के यदुवंश के अंतिम शासक थे, जो यदुओं की आपसी लड़ाई में जीवित बच गए थे.. द्वारिका के समुद्र में
डूबने पर अर्जुन द्वारिका गए और वज्र तथा शेष बची यादव महिलाओं को हस्तिनापुर ले
गए.. हस्तिनापुर लाने के बाद अर्जुन ने वज्रनाभ को मथुरा का राजा घोषित कर दिया...
यही वजह है कि अब वज्रनाभ के नाम से ही मथुरा क्षेत्र को ब्रजमंडल कहा जाता है..
आज से हजारों वर्ष पूर्व भगवान कॄष्ण ने द्वारका नगरी को बसाया था।
कृष्ण मथुरा में उत्पन्न हुए, गोकुल
में पले, पर राज उन्होने द्वारका में ही किया। यहीं बैठकर
उन्होने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली। पांड़वों को सहारा दिया। धर्म की
जीत कराई और, शिशुपाल और दुर्योधन जैसे अधर्मी राजाओं को
मिटाया। द्वारका उस जमाने में राजधानी बन गई थीं। बड़े-बड़े राजा यहां आते थे और
बहुत-से मामले में भगवान कृष्ण की सलाह लेते थे। इस जगह का धार्मिक महत्व तो है ही,
रहस्य भी कम नहीं है। कहा जाता है कि कृष्ण की मृत्यु के साथ उनकी
बसाई हुई यह नगरी समुद्र में डूब गई। आज भी यहां उस नगरी के अवशेष मौजूद हैं।
लेकिन प्रमाण आज तक नहीं मिल सका कि यह क्या है। विज्ञान इसे महाभारतकालीन निर्माण
नहीं मानता। काफी समय से जाने-माने शोधकर्ताओं ने यहां पुराणों में वर्णित
द्वारिका के रहस्य का पता लगाने का प्रयास किया, लेकिन
वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित कोई भी अध्ययन कार्य अभी तक पूरा नहीं किया गया है..
पुराणों के मुताबिक मथुरा पर लंबे समय तक यादवों के प्रबल शत्रु जरासंध तथा कालयवन
के हमले करते रहे... 17 बार इन हमलों का जवाब देने के बाद कृष्ण
ने समुद्र से कुछ जमीन मांगी.. समुद्र ने वासुदेव को प्रभास पाटन वर्तमान के
सोमनाथ शहर से 20 मील दूर समुद्र में ही जमीन दी थी।
हरिवंशपुराण में द्वारिका को पानी का किला कहा गया है.. इससे स्पष्ट होता है कि
द्वारिका वास्तव में समुद्र में स्थित एक द्वीप था जहां से निकटस्थ जगहों पर
पहुंचने के लिए नावों का सहारा लिया जाता था... पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक
कृष्ण के आदेश पर देवताओं के वास्तुकार विश्वकर्मा ने द्वारिका की बसावट का नक्शा
बनाया.. जिसके बाद सोने, चांदी, पत्थरों
के अलावा अन्य धातुओं से द्वारिका में भवनों का निर्माण कराया गया... निर्माण कार्य
पूर्ण होने के बाद कृष्ण ने योगमाया का आश्रय लेकर सभी मथुरावासियों को रात में
सोते हुए द्वारिका पहुंचा दिया और सभी को उनकी योग्यता के हिसाब से रहने के स्थान
प्रदान किए.. महाभारत के अनुसार द्वारिका की भूमि कृष्ण और राजा शाल्व के बीच हुए
युद्ध का भी गवाह बना था द्वारिका... इस युद्ध में राजा शाल्व ने कृष्ण पर उड़ते हुए
विमान में बैठकर हमला किया था..
1980 के दशक तक भारतीयों को भी पता नहीं था जिस द्वारिका में जाकर वह भगवान
श्रीनाथजी के दर्शन करते हैं वह वास्तविक द्वारिका नहीं है बल्कि अलग है.. 1980 के दशक में भारत सरकार ने जीएसआई के नेतृत्व में समुद्र में एक रिसर्च
सर्वे करने का निर्णय लिया इस रिसर्च के दौरान ही खंभात की खाड़ी में ली गई रडार
स्कैन इमेजेज से पानी में डूबी हुई द्वारिका की पहली झलक दुनिया को दिखाई दी.. एक
मानचित्र की तरह प्रतीत होने वाली इन इमेजेज में एक 5 मील
लंबे तथा 2 मील चौड़े क्षेत्रफल में व्यस्थित तरीके से मानव
निर्मित संरचनाएं दिखाई दी जिस पर भारत सरकार ने प्रोफेशनलस की टीम बना कर अध्ययन
करने का निर्णय लिया। इस टीम ने पानी की गहराई में जाकर डूबे हुए शहर की
फोटोग्राफ्स ली और विस्तृत अध्ययन किया। इसके बाद ही द्वारिका को उसका गौरव मिल
सका और भारतीयों समेत दुनिया भर के इतिहासकारों ने मानव इतिहास की एक अनूठी और
भव्य खोज माना.. एक समय था, जब लोग कहते थे कि द्वारिका नगरी
एक काल्पनिक नगर है, लेकिन इस कल्पना को सच साबित कर दिखाया
ऑर्कियोलॉजिस्ट प्रो. एसआर राव ने.. प्रो. राव और उनकी टीम ने 1979-80 में समुद्र में 560 मीटर लंबी द्वारिका की दीवार की
खोज की.. साथ में उन्हें वहां पर उस समय के बर्तन भी मिले, जो
1528 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व के
हैं। इसके अलावा सिन्धु घाटी सभ्यता के भी कई अवशेष उन्होंने खोजे.. भारतीय
पुरातत्व सर्वेक्षण के निर्देशन में भारतीय नौसेना के गोताखोरों ने पहले 2005 फिर 2007 में समुद्र में समाई द्वारिका नगरी के
अवशेषों के नमूनों को सफलतापूर्वक निकाला। इंडियन नेवी ने द्वारिका को लेकर कुछ
ऐसे नमूने इकट्ठे किए जिन्हें देखकर आश्चर्य होता है.. 2005
में नौसेना के सहयोग से प्राचीन द्वारिका नगरी से जुड़े अभियान के दौरान समुद्र की
गहराई में कटे-छंटे पत्थर मिले और लगभग 200 नमूने एकत्र किए
गए.. गुजरात में कच्छ की खाड़ी के पास स्थित द्वारिका नगर समुद्र तटीय क्षेत्र में
नौसेना के गोताखोरों की मदद से पुरा विशेषज्ञों ने व्यापक सर्वेक्षण के बाद समुद्र
के भीतर उत्खनन कार्य किया और वहां पड़े चूना पत्थरों के खंडों को भी ढूंढ निकाला..
नौसेना के गोताखोरों ने 40 हजार वर्गमीटर के दायरे में यह
उत्खनन किया और वहां पड़े भवनों के खंडों के नमूने एकत्र किए जिन्हें आरंभिक तौर
पर चूना पत्थर बताया गया था। पुरातत्व विशेषज्ञों ने बताया कि ये खंड बहुत ही
विशाल और समृद्धशाली नगर और मंदिर के अवशेष हैं...
वैज्ञानिकों के मुताबिक जब हिमयुग समाप्त हुआ तो समुद्र का जलस्तर
बढ़ा और उसमें देश-दुनिया के कई तटवर्ती शहर डूब गए.. द्वारिका भी उन शहरों में से
एक था। लेकिन सवाल यह उठता है कि हिमयुग तो आज से 10 हजार वर्ष पूर्व समाप्त हुआ.. भगवान कृष्ण ने तो नई द्वारिका का निर्माण
आज से 5 हजार 300 वर्ष पूर्व किया था,
तब ऐसे में इसके हिमयुग के दौरान समुद्र में डूब जाने की थ्योरी आधी
सच लगती है.. लेकिन बहुत से पुराणकार और
इतिहासकार मानते हैं कि द्वारिका को कृष्ण के देहांत के बाद जान-बूझकर नष्ट किया
गया था.. पुराणों के मुताबिक श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका महाभारत युद्ध के 36 साल बाद समुद्र में डूबी थी.. द्वारका के समुद्र में डूबने से पहले ही
श्रीकृष्ण सहित सभी यदुवंशी भी मारे गए थे.. समस्त यदुवंशियों के मारे जाने और
द्वारका के समुद्र में विलीन होने के पीछे मुख्य रूप से दो घटनाएं जिम्मेदार है।
एक माता गांधारी द्वारा श्रीकृष्ण को दिया गया श्राप और दूसरा ऋषियों द्वारा
श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को दिया गया श्राप। महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब
युधिष्ठर का राजतिलक हो रहा था, तब कौरवों की माता गांधारी
ने महाभारत युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए श्राप दिया था कि जिस तरह
कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार पूरे यदुवंश का भी नाश होगा... महाभारत
युद्ध के बाद जब छत्तीसवां वर्ष आरंभ हुआ तो तरह-तरह के अपशकुन होने लगे.. यह वह
दौर था, जबकि यादव लोग आपस में भयंकर तरीके से लड़ रहे थे।
इसके अलावा जरासंध और यवन लोग भी उनके घोर दुश्मन थे.. ऐसे में द्वारिका पर समुद्र
के मार्ग से भी आक्रमण हुआ और आसमानी मार्ग से भी आक्रमण किया गया। अंतत: यादवों
को उनके क्षेत्र को छोड़कर फिर से मथुरा और उसके आसपास शरण लेना पड़ी.. दुनिया भर
के इतिहासकार मानते रहे हैं कि ईसापूर्व भारत में कभी कोई बड़ा शहर नहीं था।
परन्तु द्वारिका की खोज ने दुनिया के इतिहासकारों को फिर से सोचने के लिए विवश
किया। कार्बन डेटिंग 14 के अनुसार खुदाई में मिली द्वारिका
की कहानी 9,000 वर्ष पुरानी है। इस शहर को 9-10,000 वर्षो पहले बसाया गया था। जो लगभग 2000 ईसापूर्व
पानी में डूब गई थी.. समुद्र में धरती से 36 मीटर की गहराई
पर स्थित है ऐतिहासिक शहर द्वारिका। यहां पर पानी की तेज धारा बहती है जिसके चलते
रिसचर्स को अध्ययन में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा। यहां पर बड़े, विशालकाय और भव्य भवनों की संरचनाएं मिली है जिससे इस प्राचीन शहर की
भव्यता का सहज ही अंदाजा होता है
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