सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

तिरुपति बालाजी

आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित.... भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल...  जहां लाखों नहीं करोड़ो की संख्या में भक्त पहुंचकर मन चाहा वरदान पाते हैं... तिरुपति महाराज जी के इस दरबार में अमीर और गरीब खाली हाथ आते है और झोली भर वापस जाते हैं... हर साल लाखों में नहीं करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु तिरुमाला की पहाडिय़ों पर बालाजी के दर्शन करने आते हैं.. यहां बड़े-बड़े उद्योगपति, फिल्मी सितारे और राजनेता भी दर्शन के लिए पहुंचते हैं... यह मंदिर भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित है जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं.. लोगो का ऐसा मानना है की कलियुग से आ रही मुश्किलों और क्लेश के चलते, मानवी जीवन को बचाने के लिये भगवान विष्णु, वेंकटेश्वर भगवान के रूप में अवतरित हुए थे.. तिरुमला के सात पर्वतों में से एक वेंकटाद्रि पर बना श्री वेंकटेश्वर मन्दिर यहां का सबसे बड़ा आकर्षण का केन्द्र है... इसलिए इसे सात पर्वतों का मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है... यह मंदिर दुसरे भी नामो से जाना जाता है जैसे की तिरुमाला मंदिर, तिरुपति मंदिर, तिरुपति बालाजी मंदिर... मंदिर के तरह यहां विराजमान भगवान को भी कई नामो से भक्त पुकारते हैं.. कोई इन्हें बालाजी तो कोई गोविंदा तो कोई भक्त श्रीनिवासा के नाम से अराधते हैं... जो भक्त वैकुण्ठ एकादशी के अवसर पर यहां भगवान के दर्शन के लिए आते हैं, उनके सारे पाप धुल जाते हैं.. ऐसी भी मान्यता है कि यहां आने के पश्चात व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बन्धन से मुक्ति मिल जाती है... जो भी तिरुपति आता है, प्रभु वेंकटेश्वर के दर्शन के बिना वापस नहीं जाता.. भक्तों की लम्बी कतार देखकर इस मन्दिर की प्रसिद्धि का अनुमान स्वत: ही लगाया जा सकता है... पुराणों के अनुसार, कलियुग में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद ही मुक्ति सम्भव है... माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर का दर्शन करने वाले प्रत्येक भक्त को उनकी विशेष कृपा भी प्राप्त होती है... इस मंदिर के प्रभु वेंकटेश्वर बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है... ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था.. यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है... तिरुमाला-तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियां.. शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं सप्तगिरि कहलाती है... ऐसी भी मान्यता है कि यहाँ आने के पश्चात् व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बन्धन से मुक्ति मिल जाती है.. तिरूपति बाला जी मंदिर से जुड़ी कुछ रहस्यमयी बाते जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे.. ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई भक्‍त कुछ भी सच्‍चे दिल से मांगता है, तो भगवान उसकी सारी मुरादें पूरी करते हैं.. वे लोग जिनकी मुराद भगवान पूरी कर देते हैं, वे अपनी इच्‍छा अनुसार वहां पर अपने बाल दान कर के आते हैं... तिरुपति बालाजी मंदिर में अक्सर भीड़ मिलती है इसलिए यहां पर उन लोगों के लिए एक खास सुविधा उपलब्ध है जो कम समय में जल्दी दर्शन करना चाहते हैं... दरअसल इस मंदिर में दर्शन के दौरान जो लोग 300 रुपये का शीघ्र दर्शन वाला टिकट खरीदते हैं उन्हें जल्द दर्शन करने के सुविधा के साथ साथ दो लड्डू भी मुफ्त में मिलता हैं.. दर्शन करने वाले भक्तों के लिए विभिन्न स्थानों तथा बैकों से एक विशेष पर्ची कटती है.... पर्ची के माध्यम से श्रद्धालु भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन कर सकते हैं।
भगवान वेंकटेश स्वामी को संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी माना जाता है.. हर साल करोड़ों लोग इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं.. साल के बारह महीनों में एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब यहां वेंकटेश्वर स्वामी के दर्शन करने के लिए भक्तों का तांता न लगा हो.. कई शताब्दी पूर्व बने इस मन्दिर की सबसे ख़ास बात इसकी दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का अदभुत संगम है.. ऐसा माना जाता है कि यह स्थान भारत के सबसे अधिक तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र है.. इसके साथ ही इसे विश्व के सर्वाधिक धनी धार्मिक स्थानों में से भी एक माना जाता है.. तमिल के शुरुआती साहित्य में से एक संगम साहित्य में तिरुपति को त्रिवेंगदम कहा गया है.... कहा जाता है कि तिरुपति के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं.... लेकिन यह स्पष्ट है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था... पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस मन्दिर में स्थापित भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति में ही भगवान बसते हैं और वे यहां समूचे कलियुग में विराजमान रहेंगे... वैष्णव परम्पराओं के मुताबिक यह मन्दिर 108 दिव्य देसमों का एक अंग है... कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मन्दिर के निर्माण में ख़ास योगदान रहा है... माना जाता है कि पहली बार कांचीपुरम के शासक पल्लवों वंश ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था.. 15वीं सदी के पश्चात इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैलनी शुरू हो गई थी.. सन 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजों के शासन काल के दौरान इस मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत संभालते थे.. 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले कर एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति तिरुमाला-तिरुपतिके हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया.. आंध्रप्रदेश के राज्य बनने के बाद तिरुमाला-तिरुपति समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्रप्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया.. यहां पर बिना किसी भेदभाव और रोकटोक के किसी भी जाति और धर्म के लोग आ सकते हैं... भगवान वेंकटेश्वर के इस मंदिर से बहुत सारी मान्यताएं भी जुड़ी हैं.. इस मंदिर में वेंकटेश्वर स्वामी की मूर्ति पर लगे हुए बाल असली हैं.. और ये कभी भी उलझते नहीं हैं.. और हमेशा मुलायम रहते हैं..लोगों का मानना है कि ऐसा इसलिए है.. क्योंकि यहां पर खुद भगवान विराजते हैं..कहा जाता है कि बाला जी बहुत चमत्कारी माने जाते हैं... भगवान बालाजी की मूर्ति पर अगर कान लगा के सुना जाए तो समुद्र की आवाज सुनाई देती है...इसी कारण बालाजी की मूर्ति हमेशा ही नम रहती है... प्रत्येक गुरुवार के दिन तिरुपति बालाजी को पूर्ण रूप से पूरा का पूरा चंदन का लेप लगाया जाता है.. और जब उसे हटाया जाता है... तब वहां खुद-ब-खुद ही माता लक्ष्मी की प्रतिमा उभर आती है....भगवान तिरुपति बालाजी को प्रतिदिन नीचे धोती और ऊपर साड़ी से सजाया जाता है.. यहां पर प्रसाद के रूप में अन्न प्रसाद की व्यवस्था है जिसके अंतर्गत चरणामृत, मीठी पोंगल, दही-चावल जैसे प्रसाद तीर्थयात्रियों को दर्शन के पश्चात दिया जाता है।
भगवान वेंकटेश्वर को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है..  कहा जाता है कि प्रभु श्री विष्णु ने कुछ समय के लिए तिरुमला स्थित स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था.. मन्दिर से सटे पुष्करणी पवित्र जलकुण्ड के पानी का प्रयोग केवल मन्दिर के कार्यों, जैसे भगवान की प्रतिमा को साफ़ करने जैसे कार्यों में ही किया जाता है.. इस कुण्ड का जल पूरी तरह से स्वच्छ और कीटाणुरहित है... श्रद्धालु ख़ासकर इस कुण्ड के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं.. माना जाता है कि वैकुण्ठ में विष्णु इसी कुण्ड में स्नान किया करते थे.. यह भी माना जाता है कि जो भी इसमें स्नान कर ले, उसके सारे पाप धुल जाते हैं और सभी सुख प्राप्त होते हैं... बिना यहाँ डुबकी लगाए कोई भी मन्दिर में प्रवेश नहीं कर सकता है.. कहा जाता है इस कुंड में डुबकी लगाने से शरीर और आत्मा पूरी तरह से पवित्र हो जाता है... तिरुमाला श्री वेंकटेश्वर मंदिर में साल में कुल 433 त्यौहार मनाये जाते है, साल में 365 दिन होने के बावजूद यहाँ 433 त्यौहार मनाये जाते है, जिसे नित्य कल्याणं पच्चा तोरणंका नाम दिया गया है..... यहां हर दिन त्यौहार ही होता है... तिरुपति का सबसे प्रमुख पर्व ब्रह्मोत्सवमहै जिसे मूलतः प्रसन्नता का पर्व माना जाता है.. नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व साल में एक बार तब मनाया जाता है, जब कन्या राशि में सूर्य का आगमन होता है.. .. भारत के सबसे अमीर मंदिर तिरुमला तिरुपति के विश्व प्रसिद्ध लड्डू के प्रसाद को पाना आसान काम नहीं है... यहां के लड्डू को खाने के लिए आपको ज्यादा पैसा खर्च करने की ज़रूरत तो नहीं पड़ती क्योंकि पहले दो लड्डुओं की क़ीमत रियायती दर पर 10 रुपए प्रति लड्डू है... ग्राहकों को दूसरे दो लड्डू 25 रुपए प्रति लड्डू के हिसाब से खरीदने की अनुमति है... यहां मिलने वाले लड्डू को चने के बेसन, मक्खन, चीनी, काजू, किशमिश और इलायची से बनाया जाता है... इस लड्डू को बनाने का तरीका तीन सौ साल पुराना है, जो कि एक राज़ है.... सिर्फ कुछ रसोइयों को ही इसे बनाने की ज़िम्मेदारी दी गई है... प्रसाद के रूप में मिलने वाले इस लड्डू का इतिहास 300 साल से भी ज़्यादा पुराना है. इसकी खास बात यह है कि यह कई दिनों तक खराब नहीं होता है और आप इसे आराम से कुछ दिनों तक खा सकते हैं.... बालाजी में चढ़ने वाले लड्डू एकदम ताजा होते हैं... हर दिन यहां करीब तीन लाख लड्डू तैयार किये जाते हैं... इसलिए लड्डू बनाने के लिए एक खास जगह तय की गई है... लड्डू की अवैध बिक्री को रोकने के लिए इन उच्च सुरक्षा मापदंडों को अपनाया गया है... लड्डू को एक तय मानक के हिसाब से तैयार किया जाता है. सभी लड्डू देखने में एक जैसे होते हैं. यहां तक कि उनका वजन भी तय होता है. बालाजी में मिलने वाले इस खास लड्डू की सबसे रोचक बात यह है कि लड्डू को प्रसाद के तौर पर पाने के लिए आपको एक सुरक्षा दायरे से होकर गुजरना पड़ेगा. जिसमें सुरक्षा कोड और बायोमेट्रिक विवरण जैसे, चेहरे को पहचानना वगैरह मौजूद होते है
देवताओं के पास भी इतना धन नहीं है.. ज‌ितना अकेला त‌िरुमलय पर्वत पर न‌िवास करने वाले श्री वेंकटेश्वर बालाजी के पास है.. अगर धन के आधार पर देखा जाए तो वर्तमान में सबसे धनवान भगवान हैं बालाजी.. भगवान बालाजी को लेकर कहा जाता है कि धनवान होने पर भी बालाजी सभी देवताओं से गरीब माने जाते हैं... क्योंकि वे कर्ज में डूबे हुए हैं.. ऐसे कर्ज में जिसका ब्याज युगो युगों चुका रहे है... पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक बार महर्षि भृगु वैकुंठ पधारे और आते ही शेष शैय्या पर योगनिद्रा में लेटे भगवान विष्णु की छाती पर एक लात मारी... विष्णु निद्रा से उठे और तुरंत भृगु के चरण पकड़ लिए और बोले ऋषिवर पैर में चोट तो नहीं लगी.. बस इतना कहते ही भृगु ने हाथ जोड़ लिए और बोले प्रभु आप ही सबसे सहनशील देवता हैं.. लेकिन माता लक्ष्मी को भृगु का व्यव्हार पसंद नहीं आया और वह विष्णु जी से नाराज हो गई... माता की नाराजगी की वजह ये थी कि भगवान ने भृगु को दंड क्यों नहीं दिया.. ये नाराजगी इतनी बड़ी थी कि देवी वैकुंठ छोड़कर चली गई और पृथ्वी पर पद्मावती नाम की कन्या के रूप में जन्म ले लिया... तब भगवान विष्णु ने भी अपना रूप बदला और पद्मावती के पास पहुँच गए और विवाह का प्रस्ताव रख दिया.. देवी ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया लेकिन सवाल यह खड़ा हो गया कि विवाह के लिए धन कहा से लाया जाए... तब भगवान विष्णु को एक तरकीब सूझी उन्होंने शिव और ब्रह्मा को साक्षी मानकर कुबेर से काफी धन कर्ज ले लिया.. इस कर्ज से विष्णु के वेंकटेश रूप और देवी के पद्मावती रूप का विवाह संपन्न हुआ.. भगवान विष्णु ने कुबेर से कर्ज लेते वक्त यह वचन दिया था कि कलयुग के अंत तक वे कुबेर का कर्ज चुका देंगे और कर्ज समाप्त होने पर भी वे सूद चुकाते रहेंगे... जिसके बाद ये मान्यता मानी जाने लगी की आज भी जो भक्त तिरुपति बालाजी में चढ़ावा चढ़ाता है उसे कुबेर सूद के रूप में अपने बही खाते में दर्ज करते रहते है.... तिरुपति बालाजी मंदिर विश्व का सबसे समृद्ध और धनवान मंदिर है, जहाँ भक्तगण करोडो रुपयों का दान देते है। एक आंकड़े के अनुसार बालाजी मंद‌िर ट्रस्ट के खजाने में 50 हजार करोड़ से अध‌िक की संपत्त‌ि है। रोज़ तक़रीबन 50,000 से 100,000 तीर्थयात्री मंदिर के दर्शन करने आते है, विशेष रूप से त्यौहार और फेस्टिवल के समय यह संख्या 500,000 से भी उपर की हो जाती है। तिरुपति बालाजी मंदिर को विश्व का सबसे प्रसिद्ध स्थान माना जाता है.. तिरुपति मंदिर की कुल संपत्ति करीब 1.30 लाख करोड़ रूपये है. यहां पर कुल 60,000 करोड़ का सोना, चांदी और रत्न है. वहीं 8500 करोड़ का एफडी और इन्वेस्टमेंट भी की गई है... कुल मिलाकर इस मंदिर की सालाना कमाई 600 करोड़ रुपए से ज्यादा है.


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