भारत ऐसा देश है जहां रहे भगवान। चित्रकूट ऐसी जगह जहां रहे श्री
राम।।
भारत की जब भी हम बात करते हैं तो चित्रकूट का नाम अपने आप जुबा पर आ
जाता है.. जी हां.. यह वही स्थल हैं.. जहां अयोध्या के राजा भगवान श्री राम अपनी
पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ पिता द्वारा दिए गए वनवास का काफी समय
गुजारा था.. रामचरित्र मानस के मुताबिक भगवान श्रीराम ने देवी सीता और लक्ष्मणजी
के साथ अपने वनवास के साढ़े ग्यारह वर्ष यहां बिताए थे.. तभी तो यहां पर दिन रात
भगवान की प्राप्ति के लिए ऋषि-मुनी साधना में लीन रहते हैं। ऐसी मान्यता है कि
भग्वान श्री राम ने गोस्वामी तुलसी दास को यहीं साक्षात दर्शन दिये थे। इसी संदर्भ
में ये प्रचलित दोहा है
चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर। तुलसीदास चंदन घिसे तिलक देत
रघुवीर।।
रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास के लिखे इस दोहे से चित्रकूट की
महिमा का अंदाजा हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि चित्रकूट भगवान श्रीराम की नित्य क्रीड़ाभूमि है। यह पावन स्थल
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर इलाहाबाद से 132 किमी दक्षिण में स्थित लगभग
38 किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है, यहां पर तमाम देवी-देवताओं के मंदिर के दीदार
होते हैं। मंदाकिनी नदी के घाट पर पूरे साल श्रद्धालु स्नान-दर्शन के लिए तांता
लगा रहता हैं। हर आमावस्या, हर सोमवार और दीपावली के अवसर पर
मेला लगता हैं। जिसमें लाखों की संख्या में सैलानी शरीक होते हैं.. विंध्य की पहाड़ियों में स्थित सुरम्य प्राकृतिक
छटाओं से घिरा चित्रकूट धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण स्थल है.. चित्रकूट
की महत्ता का वर्णन पुराणों के प्रणेता वेद व्यास, आदिकवि कालिदास, संत तुलसीदास तथा कविवर रहीम ने भी
अपनी कृतियों में किया है।
जेहि पर विपदा परत है, सो आवत एहि देस। चित्रकूट में रमि रहे रहिमन अवध नरेस।
चित्रकूट एक ऐसी तपस्थली जहां की मिटृी की खुशबू देश विदेश के योगियों..
ऋषियों और श्रधालुओं को अपनी ओर हमेशा आकर्षित करती रही है.. विचित्रत्राओं के
परिवेश में पल्लवित होती इस धरा का नाम पुराने जमान में ही चित्रकूट दे दिया गया
था.. इस धरा पर आने वाला सैलानी यहां देखे जाने वाले नयनाभिराम द्श्यों को देखकर
आनंदित हो उठता है.. विचित्रताओ और विभिन्नताओं वाले इस क्षेत्र पर कहीं कल-कल
करती मंदाकिनी का सुन्दर जल है तो कही विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं का उन्मुक्त यौवन
विखेरती पहाडियां तों कही सुन्दर गुफाओं में मौजूद नायाब नमूने हैं तो कही कई किलोमीटरों
में फैले विशालकाय जंगल.. प्रकृति की अनमोल धरोहरों से आनंदित होता व्यक्ति जब
बम-बम भोले और जयश्रीराम के उदघोष एक साथ सुनता है तो वह रोमाचित होकर धर्म की इस
नगरी में आकर अपने आपको पुण्य का सबसे बड़ा भागी मानता है.. भारत के तीर्थ स्थलों में चित्रकुट को इसलिए भी गौरव
प्राप्त है कि इसी तीर्थ में भक्तराज हनुमान की सहायता से भक्त शिरोमणि तुलसीदास
को प्रभु श्रीराम के दर्शन हुए थे.. चित्रकूट सदियों से ऋषि-मुनियों की तपस्थली
रहा है। यहां पर मुनियों का एक बड़े समाज का संचालन महर्षि अत्रि करते थे।
चित्रकूट बहुत पावन और पवित्र है.. रामायण, पद्मपुराण, स्कंदपुराण
और महाभारत महापुराणों में भी इस स्थल का वर्णन मिलता है.. माना जाता है की बहुत से साधु-संतों ने भगवान
शिव के साथ यहीं पर तपस्या की थी.. ब्रह्मा, विष्णु और महेश
ने इसी स्थान पर चंद्रमा, मुनि दत्तात्रेय और ऋषि दुर्वासा
के रूप में जन्म लिया था.. कहा जाता है युधिष्ठिर ने भी चित्रकूट में तप किया था
और फिर अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को राज-पाठ देकर हिमालय की ओर चले दिए थे..
कामतानाथजी को चित्रकुट तीर्थ का प्रधान देवता माना गया है। वैसे तो मंदाकिनी नदी
के तट पर चित्रकुट के दर्शन के लिए भक्तों का आना-जाना हमेशा लगा रहता है पर
अमावस्या के दिन यहां विशाल मेला लगता है.. चित्रकुट के केन्द्र स्थल का नाम
रामघाट है जो मंदाकिनी के किनारे शोभायमान है.. इस घाट के ऊपर अनेक नए पुराणे
मंदिर और धर्मशालाएं हैं, लेकिन कामदर गिरी भवन भव्य बना हुआ
है। कामदर गिरी भवन के दक्षिण में राघव प्रयागघाट है यहां मंदाकिनी ओर गायत्री
नदियां आकर मिलती हैं। जानकीकुंड यहां का पवित्र मंदिर दर्शनीय है। नदी के किनारे
श्वेत पत्थरों पर यहां चरण चिन्ह हैं। लोक मान्यता है कि इसी स्थान पर माता सीता
स्नान करती थी। जानकी कुंड से कुछ दुर स्फटिक शिला है जहां स्फटिक युक्त एक विशाल
शिला है। मान्यता है कि अत्रि आश्रम आते जाते समय सीता और राम विश्राम किया करते
थे। यह वही स्थल है जहां श्रीराम कि शक्ति की परीक्षा लेने के लिए इंद्र पुत्र
जयंत ने सीता जी को चोंच मारी थी। यहां श्रीराम के चरण चिन्ह दर्शनीय है। इस स्थान
पर प्राकृतिक दृश्य बडा मनोरम है। रामघाट से लगभग 20 कि.मी. की दूरी पर भरत कुप है
मान्यता है कि श्रीराम को वापस अयोध्या लौटाने आए भरत के राज्यभिषेक हेतु लाए गए
समस्त तीर्थों के जल को इसी कुप में डाला गया था.. चित्रकूट की महिमा अपार है यहां
हरेक मकर संक्राती को विशाल मेला लगता है। इसके अलावा वनदेवी स्थान, राम दरबार, चरण पादुका मंदिर, यज्ञवेदी
मंदिर, तुलसी स्थान, सीता रसोई,
श्री केकई मंदिर, दास हनुमान मंदिर श्रीराम
पंचायत मंदिर यहां के भूमि को सुशोभित करते हैं।
यूं तो चित्रकूट प्राचीनकाल से ही प्रसिद्ध धार्मिक
सांस्कृतिक तीर्थ स्थल रहा है लेकिन श्रीरामचंद्र जी के साढ़े ग्यारह वर्ष तक यहां
वनवास करने से इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है। चित्रकूट वास को शोक और
विपत्तिनाशक कहा जाता था। वाल्मीकि रामायण में स्वयं भगवान राम कहते हैं कि
चित्रकूट में वास करने के कारण उन्हें जरा भी वनवास का कष्ट नहीं हुआ.. वनवास काल
में राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ यहां इतनी लंबी अवधि तक निवास किया कि चित्रकूट
की पग-पग भूमि राम, लक्ष्मण
और सीता के चरणों से अंकित है.. चित्रकूट के मुख्य देव कामतानाथ हैं जो कामदगिरि
पर्वत पर विराजमान हैं, जिनकी परिक्रमा और दर्शन करने से
माना जाता है कि व्यक्ति के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। इस पर्वत के चारों ओर
पक्का परिक्रमा मार्ग बना हुआ है। मार्ग के किनारे-किनारे राम मुहल्ला, मुखारबिंद, साक्षी गोपाल, भरत-मिलाप
जैसे कई देवालय बने हुए हैं। दक्षिण की ओर एक छोटी पहाड़ी पर लक्ष्मणजी का एक
मंदिर भी है। कहा जाता है कि वनवास में लक्ष्मण जी यहीं रहा करते थे। परिक्रमा
मार्ग में ही भरत मिलाप स्थित है। कहा जाता है कि यहीं भरत भगवान श्री राम से
मिलने आए थे। चित्रकूट का सर्वाधिक रम्य स्थल मंदाकिनी नदी के पयस्वनी तट पर मध्य
प्रदेश की सीमा में स्थित जानकी कुंड है। कहा जाता है कि माता जानकी इसी कुंड में
स्नान किया करती थीं। इसके आगे एक विशालखंड है जिस पर भगवान राम के चरणचिह्न अंकित
हैं। राम ने चित्रकूट में साधनाकर शक्ति का संचय किया एवं अन्याय और अत्याचार के
विरुद्ध संघर्ष का संकल्प किया.. यहाँ सदियों से प्रवाहित मंदाकिनी नदी का जल
पवित्र तथा सभी पापों का नाश करने वाला कहा जाता है। कामाद्गिरि पर्वत संभतः विश्व
का पहला ऐसा पर्वत है जिसकी वर्ष में लाखों तीर्थ यात्री परिक्रमा करते हैं।
चित्रकूट की महत्ता के बारे में गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है कि जो व्यक्ति
चित्रकूट में रहकर मंदाकिनी का जल ग्रहण कर भगवान श्रीरामचंद्र जी का जाप करता है,
उसे सहज ही परम सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
चित्रकूट स्थित कामदगिरी पर्वत का काफी धार्मिक महत्व है। श्रद्धालु
कामदगिरी पर्वत की 5 किमी. की परिक्रमा कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना
करते हैं। जंगलों से घिरे इस पर्वत के तल पर अनेक मंदिर बने हुए हैं। चित्रकूट के
लोकप्रिय कामतानाथ और भरत मिलाप मंदिर भी यहीं स्थित है.. चित्रकूट में रामघाट का
भी बड़ा महत्व है.. रामघाट मंदाकिनी नदी के तट पर बना है.. रामघाट पर हमेशा
धार्मिक क्रियाकलाप चलते रहते हैं। घाट में गेरूआ वस्त्र धारण किए साधु-सन्तों को
भजन और कीर्तन करते देख बहुत अच्छा महसूस होता है। शाम को होने वाली यहां की आरती
मन को काफी सुकून पहुंचाती है... रामघाट से 2 किमी. की दूरी पर मंदाकिनी नदी के
किनार जानकी कुण्ड स्थित है.. कहा जाता है कि इसी कुण्ड में जगत जननी जानकी जी ने
स्नान किया था, इसी कारण इसको जानकी
कुण्ड कहते है.. यहाँ पर आज भी पाषाण शिला में श्री जानकी जी के चरण-चिन्ह अंकित
हैं। जो उनकी स्मृति को इतने समय बीतने पर भी ताजी बनाये हुये हैं। यहाँ बहुत से
ऋषिगण फलाहार करके श्रीराम जी की आराधना करते हैं.. जानकी कुण्ड से कुछ दूरी पर
मंदाकिनी नदी के किनार ही यह शिला स्थित है। माना जाता है कि इस शिला पर सीता के
पैरों के निशान मुद्रित हैं। कहा जाता है कि जब वह इस शिला पर खड़ी थीं तो जयंत ने
काक रूप धारण कर उन्हें चोंच मारी थी। इस शिला पर राम और सीता बैठकर चित्रकूट की
सुन्दरता निहारते थे.. मंदाकिनी नदी के किनारे अनसुइया अत्री आश्रम भी है जहां
अत्री मुनी, अनुसुइया, दत्तात्रेयय और
दुर्वाशा मुनी की प्रतिमा स्थापित हैं.. शहर से 18 किमी. की दूरी पर गुप्त गोदावरी
स्थित हैं। यहां दो गुफाएं हैं। एक गुफा चौड़ी और ऊंची है। प्रवेश द्वार संकरा
होने के कारण इसमें आसानी से नहीं घुसा जा सकता। गुफा के अंत में एक छोटा तालाब है
जिसे गोदावरी नदी कहा जाता है। दूसरी गुफा लंबी और संकरी है जिससे हमेशा पानी बहता
रहता है। कहा जाता है कि इस गुफा के अंत में राम और लक्ष्मण ने दरबार लगाया था.. पहाड़ी
के शिखर पर स्थित हनुमान धारा में हनुमान की एक विशाल मूर्ति है। मूर्ति के सामने
तालाब में झरने से पानी गिरता है। कहा जाता है कि यह धारा श्रीराम ने लंका दहन से
आए हनुमान के आराम के लिए बनवाई थी। पहाड़ी के शिखर पर ही सीता रसोई है। यहां से
चित्रकूट का सुन्दर नजारा देखा जा सकता है.. कहा जाता है कि भगवान राम के
राज्याभिषेक के लिए भरत ने भारत की सभी नदियों से जल एकत्रित कर यहां रखा था।
अत्री मुनि के परामर्श पर भरत ने जल एक कूप में रख दिया था। इसी कूप को भरत कूप के
नाम से जाना जाता है। भगवान राम को समर्पित यहां एक मंदिर भी है।
चित्रकूट से 19 किमी की दूरी पर स्थित गुप्त गोदावरी एक ऐसा
ही स्थल है। जिसमें प्राचीनकाल की दो गुफाएं स्थित हैं, जिनके
बारे में मान्यता है कि यहां भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ दीन-दुखियों की
समस्याओं का निदान किया करते थे। इन गुफाओं के भीतर ब्रह्मा, विष्णु और शिव की मूर्तियां स्थापित हैं। 52 किमी की
दूरी पर स्थित कालिंजर दुर्ग एक अन्य दर्शनीय स्थल है। इस किले का वर्णन पुराणों
और महाभारत में मिलता है.. चित्रकूट से दक्षिण में लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर
सती अनुसुइया तथा महर्षि अत्रि का आश्रम है। यहीं सती अनुसुइया और महर्षि अत्रि के
साथ-साथ दत्तात्रेय व दुर्वासा व चंद्रमा आदि की मूर्तियाँ स्थापित हैं। कहा जाता
है कि यहीं सती अनुसुइया ने देवी सीता को पतिव्रत धर्म का उपदेश दिया था। यहाँ से
छह किलोमीटर दूर गुप्त गोदावरी नाम की एक प्राकृतिक गुफा और जानकी कुंड है। यही पर
गुफा से जलधारा कुंड में गिरती है और वहीं लुप्त हो जाती है। इसलिए इसे गुप्त
गोदावरी कहा जाता है। हनुमान धारा चित्रकुट में एक ऐसा पवित्र स्थल है जहां के
बारे में मान्यता है कि लंका दहन के उपरांत भक्तराज श्री हनुमानजी ने अपने शरीर के
तापके शक्ती धारा की जलराशि से बुझाया था। यह धारा रामघाट से लगभग 4 कि.मी. दूर है। इसका जल शीतल और स्वच्छ है। 365 दिन
यह जल आता रहता है। यह जल कहां से आता है यह किसी को जानकारी नहीं है। यदि किसी
व्यक्ति को दमा की बिमारी है तो यहां के जल पीने से काफी लोगों को लाभ मिला है।
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