श्री कृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्स्व है..पवित्र माह सावन के समाप्त होते ही भाद्रपद महीना
शुरू हो जाता है…इस
महीने की अष्टमी को यह पर्व पूरे देश भर में बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता
है…श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन मौके पर भगवान कान्हा की
मोहक छवि दर्शन के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आज के दिन मथुरा पहुंचते हैं…श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मथुरा कृष्णमय हो जाता है…मंदिरों
को खास तौर पर सजाया जाता है….जन्मष्टमी में स्त्री-पुरुष
बारह बजे तक व्रत रखते हैं….इस दिन मंदिरों में झांकियां
सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है….और भगवान
श्रीकृष्ण का जन्मदिन बडे़ ही धूमधाम से मनाया जाता है…जगद्गुरु
श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता
है….श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की
अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया….चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे…इस
दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं……इसीलिए
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है…..हिन्दू धर्म में श्री कृष्ण जन्माष्टमी को अलग अलग जगहों पर विभिन्न नामों
से जाना जाता है…..जैसे कृष्णाष्टमी, सातम
आठम, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी,
श्रीकृष्ण जयंती और जन्माष्टमी…..योगेश्वर
कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे
हैं….जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे
भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं..
कृष्ण जन्माष्टमी राजा कंस के युग से संबंधित है...कंस मथुरा का राजा
था...वह देवकी के चचेरे भाई थे वह अपनी
बहन को गहरे दिल से प्यार करता था....और कभी भी उसे उदास नहीं होने देता था...उसनॉ
अपनी बहन की शादी बड़े धुमधाम से की...एक बार जब वह अपनी बहन की ससुराल जा रहा था...तभी
उसे एक आकाशवाणी सुनाई दी....“कंस,
जिस बहन को तुम बहुत प्यार कर रहे हो वह एक दिन तुम्हारी मृत्यु का
कारण बनेगी....देवकी और वासुदेव का आठवां बच्चा तुझे मार डालेगा....जैसे ही,
उसे यह चेतावनी मिली, उसने अपने सैनिकों को
अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को कारागार में रखने का आदेश दे दिया...उसने मथुरा
के सभी लोगों के साथ क्रूरतापूर्वक बर्ताव करना शुरू कर दिया....उसने घोषणा की कि “मैं अपनी बहन के सभी बच्चों को, अपने हत्यारे को
रास्ते से हटाने के लिए मार दूंगा”... उसकी बहन ने अपने पहले
बच्चे को जन्म दिया, फिर दूसरा, तीसरा
और फिर सातवां जो कि कंस के द्वारा एक-एक करके मारे गए.... देवताओं में भगवान श्री
कृष्ण विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव के अलग रंग दिखाई
देते हैं...उनका बचपन लीलाओं से भरा पड़ा है...उनकी जवानी रासलीलाओं की कहानी कहती
है, महाभारत में गीता के उपदेश से कर्तव्यनिष्ठा का जो पाठ
भगवान श्री कृष्ण ने पढ़ाया है....आज भी उसका अध्ययन करने पर हर बार नये अर्थ निकल
कर सामने आते हैं...भगवान श्री कृष्ण के जन्म लेने से लेकर उनकी मृत्यु तक अनेक
रोमांचक कहानियां है...इन्ही श्री कृष्ण के जन्मदिन को हिंदू धर्म में आस्था रखने
वाले और भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले जन्माष्टमी के रूप में मनाते
हैं...और श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं...जन्माष्टमी का त्यौहार भारत देश
में ही नही बल्कि पूरी दुनियाँ में बड़े ही उल्लास और आस्था के साथ मनाया जाता है
जहाँ पर भारतीय निवास करते है.मुरली मनोहर, बाल गोपाल,
कान्हा, रास बिहारी और न जाने कितने नाम और
उनकी उतनी ही लीलाएं...भगवान कृष्ण की यही तो महिमा है....मुरली मनोहर के एक ऐसे
ही मंदिर के दर्शन पूजन का सौभाग्य जहां भगवान कृष्ण राधा संग नहीं...बल्कि अपनी
पत्नी रूक्मिणी संग दर्शन देते हैं...
हिंदू धर्म के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं...वहीं
सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग व
मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं...वैसे तो भगवान विष्णु ने अभी तक 23 अवतारों को धारण किया, लेकिन
इन अवतारों में उनके सबसे महत्वपूर्ण अवतार श्रीकृष्ण व श्रीराम माने गए हैं...
विष्णु पुराण के अनुसार जो व्यक्ति भगवान विष्णु को प्रसन्न रखना
चाहते हैं…और उनकी कृपा पाना चाहते हैं उन्हें अपने काम से
मतलब रखना चाहिए….साथ ही उन्हें इस बात का भी ध्यान रहना
चाहिए की दूसरों की निंदा करने से बचना है..प्रभु को प्रसन्न
करने के लिए इस बात को ध्यान रखें कि जितना आपके पास धन-संपत्ति हो उसी में
संतुष्ट रहें, दूसरों के धन के प्रति लालच न रखे...पराई स्त्री
के प्रति गलत नजर व काम भाव से बचना चाहिए...साथ ही गुरुजनों, देवता आदि के प्रति बुरे शब्द नहीं कहने पर ही भगवान कृष्ण उनसे प्रसन्न
रहते हैं...जो व्यक्ति झूठ बोलकर दूसरों को बदनाम करने की
कोशिश करता है, उसे अगले जन्म में इसका दंड का भागी होता है...
इसलिए दूसरों पर झूठे इल्जाम लगाकर उन्हें बदनाम न करें....जीवों
के प्रति दया भाव रखें, किसी जीव की हत्या या उन्हें चोट
पहुंचाने की कोशिश न करें…..इसके अलावा किसी के प्रति
अपना-पराया या फिर शत्रु आदि का भाव न रखकर सबके साथ समभाव रखना चाहिए।
कृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिनों पर मनाई जाती है….जब ऐसा होता है….तो तब पहले दिन
वाली जन्माष्टमी स्मार्त सम्प्रदाय के लोगो के लिये और दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी
वैष्णव सम्प्रदाय के लोगो के लिये होती है….. उत्तर भारत में
श्रद्धालु स्मार्त और वैष्णव जन्माष्टमी का भेद नहीं करते और दोनों सम्प्रदाय की जन्माष्टमी
एक ही दिन मनाते हैं….हमारे विचार में यह सर्वसम्मति इस्कॉन
संस्थान की वजह से है..."कृष्ण चेतना के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय"
संस्था, जिसे इस्कॉन के नाम से भी जाना जाता है,…वैष्णव परम्पराओं और सिद्धान्तों के आधार पर निर्माणित की गयी है…अतः इस्कॉन के ज्यादातर अनुयायी वैष्णव सम्प्रदाय के लोग होते हैं.... इस्कॉन
संस्था सर्वाधिक व्यावसायिक और वैश्विक धार्मिक संस्थानों में से एक है जो इस्कॉन
संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये धन और संसाधन खर्च करती है...इस्कॉन की परम्पराएँ
भिन्न होती है और जन्माष्टमी उत्सव मनाने का सबसे उपयुक्त दिन इस्कॉन से अलग भी हो
सकता है...स्मार्त अनुयायी, जो स्मार्त और वैष्णव सम्प्रदाय
के अन्तर को जानते हैं, वे जन्माष्टमी व्रत के लिये इस्कॉन
द्वारा निर्धारित दिन का अनुगमन नहीं करते...ब्रज क्षेत्र, मथुरा
और वृन्दावन में, इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन का सर्वसम्मति
से अनुगमन किया जाता है...श्रद्धालु जो दूसरों को देखकर जन्माष्टमी के दिन का
अनुसरण करते हैं वो इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन को ही उपयुक्त मानते हैं....लोग
जो वैष्णव धर्म के अनुयायी नहीं होते हैं, वो स्मार्त धर्म
के अनुयायी होते हैं...स्मार्त अनुयायियों के लिये, हिन्दु
ग्रन्थ धर्मसिन्धु और निर्णयसिन्धु में, जन्माष्टमी के दिन
को निर्धारित करने के लिये स्पष्ट नियम हैं...जन्माष्टमी के दिन का निर्णय हिन्दु
ग्रन्थ में बताये गये नियमों के आधार पर करना चाहिये....इस अन्तर को समझने के लिए
एकादशी उपवास एक अच्छा उदाहरण है....एकादशी का व्रत धारण करने के लिये, स्मार्त और वैष्णव सम्प्रदायों के अलग-अलग नियम होते हैं....ज्यादातर
श्रद्धालु एकादशी के अलग-अलग नियमों के बारे में जानते हैं जहां वैष्णव धर्म को
मानने वाले लोग अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र को प्राथमिकता देते हैं,वे कभी
सप्तमी तिथि के दिन जन्माष्टमी नहीं मनाते…वैष्णव नियमों के
अनुसार हिन्दु कैलेण्डर में जन्माष्टमी का दिन अष्टमी अथवा नवमी तिथि पर ही पड़ता
है।यह पृष्ठ स्मार्त सम्प्रदाय के लिये जन्माष्टमी का दिन दर्शाता है….और वैष्णव जन्माष्टमी का दिन स्मार्त जन्माष्टमी से पृथक होता है..
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