एक ऐसा संत जिसने कांग्रेस को चुनाव निशान दिया पंजा। जिसके पास लगती
थी बड़ी बड़ी शख्सीयतों की लाइन.... इनके दरबार में शामिल होते थे जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा
गांधी, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, राजीव
गांधी जैसे कई बड़े नाम.... इनसे मिलने इंग्लैड से देवरिया तक आया था जार्ज पंचम....वो
देते थे पैरों से आशीर्वाद.... कहा जाता है वो किसी महिला के गर्भ से नहीं बल्कि
पानी से हुए थे अवतरित.... वो रहते थे बांस की बनी एक मचान पर... और करते थे पानी
के अन्दर जल साधना... वो करते थे पेड़ पौधों से बातचीत... और समझते थे जानवरों की
भाषा.. वो कर लेता थे पल भर में खतरनाक जंगली जानवरों पर काबू....जिसे हठयोग में
थी महारत हासिल....जो पारंगत थे महर्षि पातंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में....जिनका
आशीर्वाद था हर मर्ज की दवा...जिनकी याददाश्त थी कम्प्यूटर से भी तेज...जो करते थे
हिमालय में गुप्त साधना....जिसने सारी जींदगी अन्न नहीं खाया....उन्होने दूध व शहद
पीकर जीवन गुजार दिया....जिन्होने अपना सम्पुर्ण जीवन निर्वस्त्र ही गुजारा जिसने
की थी राजेन्द्र प्रसाद के राष्ट्रपति बनने की भविष्यवाणी...जिसे खेचरी मुद्रा पर
सिद्धि प्राप्त थी, जो करते थे खेचरी मुद्रा से आयू और भुख पर नियन्त्रण....जिनके आस-पास
उगने वाले बबूल के पेड़ों में नहीं होते थे कांटे...जो अन्तरध्यान होकर कहीं भी
पहुंच जाते थे....जो कर सकते थे नीर्जीव वस्तुओं पर नियंत्रण जिन्हें भक्त कहते थे
दया का महासागर।
यूपी के देवरिया जिले में मइल थाना इलाके के देवसियां गांव में अपनी
कर्मस्थली बनाने वाले देवराहा बाबा एक ऐसे योगी थे जिनकी उम्र का सही अनुमान कोई
नहीं लगा पाया... कोइ इनकी उम्र 900 साल बताता है तो कोइ 250 साल.. देवरहा बाबा का
जन्म के विषय में अलग-अलग मत हैं कोइ उन्हें आसम से आया हुआ बताता है तो कोइ जल से
अवतरित महापुरुष... डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, जैसी विभूतियों ने पूज्य देवरहा
बाबा के दर्शन कर अपने को कृतार्थ अनुभव किया था.. पूज्य महर्षि पातंजलि द्वारा
प्रतिपादित अष्टांग योग में पारंगत थे देवरिया के देवरहा बाबा... लोग उनके पास हठयोग सीखने भी जाते थे. सुपात्र लोगों
को वे हठयोग की दसों मुद्राएं सिखाते थे.... ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक और
समाधि जैसे मुद्राओं पर वे गूढ़ विवेचन करते थे... जब कभी बड़े सिद्ध सम्मेलनों
में उन्हें बुलाया जाता तो....वे संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा और ज्ञान से सबको
चकित कर देते थे... लोग यही सोचते थे कि इस बाबा ने इतना सब कुछ कब और कैसे जान लिया...
कहा जाता है आपातकाल के बाद हुए चुनावों में हार के बाद इंदिरा गांधी देवरहा बाबा
से आशीर्वाद लेने पहुंची तो बाबा ने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया....और
वही हाथ का पंजा बन गया कांग्रेस का चुनाव चिन्ह...इसके बाद 1980 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वह देश की
प्रधानमंत्री बनीं।
देवरहा बाबा का आशीर्वाद देने का तरीका सबसे अलग था... बांस के बने मचान
पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया...वो तो समझो धन्य हो गया... कहा
जाता है कि बाबा पेड़ पौधों से भी बातें किया करते थे...बाबा के आश्रम में बबूल तो
थे लेकिन उनमें कांटे नहीं होते थे.... यही नहीं उन पेडों से खुशबू भी आती थी...बाबा
से मिलने को हर रोज बड़ी संख्या में भक्त उमड़ते थे... बाबा भक्तों के मन की बात
भी बिना बताए जान जाते थे....बाबा ने पूरे जीवन में अन्न को हाथ नहीं
लगाया....सारी जिन्दगी दूध और शहद पीकर ही गुजार दी... श्रीफल का रस से उन्हे बहुत
प्रेम था....बाबा की ख्याति इतनी थी कि 1911 में इंग्लैड का राजा जार्ज पंचम जब
भारत आया तो सीधे बाबा से मिलने उनके आश्रम तक आ पहुंचा... बाबा और जार्ज के बीच
हुइ बातचीत अभी भी गुप्त है... डॉ राजेन्द्र प्रसाद को बचपन में बाबा ने जब उन्हें
पहली बार देखा था तो देखते ही बोल पड़े थे कि ये लड़का तो राजा बनेगा...
राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने सन् 1954 के प्रयाग कुंभ में बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया था.... बाबा को
जानवरों की भाषा भी समझ में आती थी...बाबा खतरनाक जंगली जानवरों को भी पल भर में
काबू कर लेते थे.... मान्यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई थी... भक्तों
के लिए बाबा दया का महासमुद्र थे... जो भी बाबा के दरबार में आया उनपर बाबा की कृपा
बरसी और खूब बरसी... कहा जाता है कि बाबा भक्तों को देखते ही उनके मन की बात जान
जाते थे....उन्हे यह भी पता होता था कि उनके बारे में कब कहां और क्या बात हो रही
है...
साल के आठ महिने बाबा मइल में ही गुजारते थे...फाल्गुन में मथुरा, माघ
में प्रयाग, कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा किनारे के अलावा कुछ समय हिमालय में
एकांतवास भी करते थे....बाबा ने खुद कभी कुछ नहीं खाया लेकिन भक्तगण जो भी चढावा
लेकर पहुंचते... बाबा उसे भक्तों पर ही बरसा दिया करते थे....उनसे प्रसाद पाने के
लिए सैंकडो भक्तों की भीड रोज जुटती थी...और फिर
अचानक 19 जून 1990 को योगिनी एकादशी के दिन बाबा ने दर्शन देना बंद कर दिया....लगा
कि जैसे कुछ अनहोनी होने वाली है....मौसम तक का मिजाज बदला नजर आ रहा था....यमुना
की लहरें भी बेचैन होने लगीं....मचान पर बाबा त्रिबंध सिद्धासन पर बैठे ही रहे.
डॉक्टरों की टीम बुलाई गयी...थर्मामीटर देखा तो बाबा के शरीर का तापमान पारे की
अंतिम सीमा को तोड निकलने पर आमादा था... आकाश में काले बादल छा गये, तेज आंधियां तूफान ले आयीं...यमुना
की लहरों का उछाल बाबा की मचान तक पहुंचने लगा...और इन्हीं सबके बीच शाम चार बजे
के करीब देवराहा बाबा का शरीर स्पंदनरहित हो गया.... भक्तों की अपार भीड भी
प्रकृति के साथ हाहाकार करने लगी..... और 19 जून सन् 1990 की योगिनी एकादशी
के पावन दिन देवराहा बाबा ने निर्वाण प्राप्त किया।
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