शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2017

अखिलेश के राज में घोटाले

अखिलेश के राज में घोटाले
हम बात कर रहे हैं घोटाले के घंटालों की। अखिलेश सरकार की कारगुजारियों की। हम उन घोटालों की परतें उधेड़ेंगे जो पिछली सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक थीं। और आपको बताएंगे कि नेताओं अधिकारियों और ठेकेदारों ने मिलकर किस तरह से करोड़ों का बंदरबांट किया। लखनऊ से मिर्ज़ापुर तक। अमेठी से प्रतापगढ़ तक किस तरह से अलग-अलग सरकारी योजनाओं को पलीता लगाया गया। बड़े बड़े लोग। बड़े बड़े घोटाले। सरकार बदली। तो चमचमाती परियोजनाओं के पीछे भद्दा चेहरा भी सामने आ गया। सोनभद्र में सबसे पहले अधिकारियों के पंजीरी के पचाने का पता चला तो परते पूरे प्रदेश में खुलती चली गईं। सपा सरकार में नेता और बाल विकास पुष्टाहार विभाग के अधिकारी और फर्मों ने मिलकर 12 हज़ार करोड़ की पंजीरी का घोटाला कर डाला वो भी नई सरकार बनने से तुरंत पहले। अखिलेश सरकार आए थे। बड़ा तामझाम था। साइकिल यात्रा निकाली थी तो लगा था कि सूबे की जनता को सिरहाने बैठाएंगे। सेवा करेंगे, विकास करेंगे, काम करेंगे, लेकिन पांच साल पूरे होते-होते सरकार के मातहतों ने ऐसे-ऐसे कारनामें कर डाले कि आप गिनते रह जाओगे। और योजनाओं का पैसा घोटालों के कुओं में ढूंढते रह जाओगे। समाजवाद की सरपरस्ती वाली अखिलेश सरकार में योजनाएं रद्दी हो गई और साइकिल के सहारे सत्ता का शहद चखने वाले नेता और आस-पास भिनभिनाने वाले अधिकारी घोटालों के घंटाल बन गए। सूबे में सत्ता परिवर्तन हुआ। संत योगी प्रदेश के सीएम बने तो सबसे पहले घोटालों के कुएं में झांकना शुरू किया। परते खुलीं तो पता चला कि पुराने साहब लोगों ने पंजीरी तक नहीं छोड़ी। बाल विकास पुष्टाहार विभाग में अधिकारियों ने ऐसी गंध फैलाई कि पोषण के बनी पंजीरी विभाग के अधिकारियों से पनाह मांगने लगी। साहब लोग 12 हज़ार करोड़ रुपये की पंचीरी पचा गए और एक बार भी डकार नहीं ली। अखिलेश का काम 11 मार्च से पहले तक खूब बोला उसके बाद कारनामें बोलने शुरू। और शुरू हुए तो ऐसे कि बंद होने का नाम नहीं ले रहे। बाल विकास विभाग के अधिकारियों ने घर भरा, बैंक भरे, पेट भरा, लेकिन मन नहीं भरा तो आखिरी समय में भी 12 हज़ार करोड़ के टेंडर पास कर दिए। केंद्र सरकार ने बच्चों के कुपोषण के बचाने लिए पोषण वाली पंजीरी बांटने की योजना चलाई थी। लेकिन किसी को क्या पता कि कुपोषण के निपटने से पहले पैसे को पोषक अफसरों से निपटना पड़ेगा। ये घोटाला कैसे हुआ। कैसे इतनी पंजीरी लोग पचा ले गए आइये आपको बताते हैं। पहले आचार संहिता के दौरान 12 हज़ार करोड़ के टेंडर कर दिए गए। सपा सरकार ने आनन-फानन में एक नहीं बल्कि 3 साल तक के टेंडर जारी कर दिए। विभाग से साठगांठ कर खंडेलवाल और चड्ढा सिंडीकेट ने ठेके हथिया लिए। उसके बाद सप्लायरों ने खुद ही अपनी टेस्ट लैब बना ली। यानि गलत-सलत टेंस्टिंग कर घटिया क्वालिटी का माल खुद तैयार कर बिना टेंडर एग्रीमेंट के पंजीरी बंटवाते रहे। महिला एवं बाल विकास विभाग के आंकड़ों के मुताबिक बाल विकास परियोजना के तहत प्रदेश में कुल 821 विकास खण्डों में आने वाले गांवों को लाभ पहुंचाया जा रहा है। लेकिन ये धरातल पर नहीं पहुंच पाता था। इस महा घोटाले का खुलासा सबसे पहले कुछ न्यूज चैनल ने किया था जिसके बाद सूबे के नए मुखिया योगी आदित्यानाथ ने पंजीरी के टेंडर के एग्रीमेंट पर रोक लगा दी। और बाल विकास पुष्टाहार के इस मामले पर सख्ती से कार्रवाई का आदेश दिया। सूबे का निजाम बदला तो लुटेरे अधिकारियो ने मिजाज बदल लिया। अखिलेश सरकार में मलाईदार पदों पर बैठे अधिकारी नयी सरकार में अपना बोरिया बिस्तर बंधने के डर से सरकारी धन लूटने का कोई रास्ता नहीं छोड़ रहे हैं। पुष्टाहार विभाग के करोडों के घोटाले के बाद अब माध्यमिक शिक्षा विभाग का एक नया कारनामा सामने आया है। अधिकारी वही हैं। निज़ाम बदला है। योजनाओं पर निगरानी शुरू हुई तो अधिकारियों की सांसें हलक में अटक गई। और रुक गई भ्रष्टाचार की वो जुगाली जिसमें नोट भरे थे। पहले बाल विकास पुष्टाहार की पंजीरी पचा गए फिर पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार की महत्वाकांक्षी लैपटॉप वितरण योजना का भी बट्टा बैठा दिया। पंजीरी का पोषण चूसकर उसे जानवरों का चारा बना और लैटटॉप का हार्टवेयर निकालकर अपना मनी बिल बढ़ा लिया ऐसे तो हैं उत्तर प्रदेश के अधिकारी। डिग्री कोई भी हो लेकिन भ्रष्टाचार में इनको डिक्टिंशन हासिल है। जिस ललैपटॉप का लॉलीपॉप दिखाकर 2012 में अखिलेश यादव ने सरकार बनाई थी। उस लैपटॉप योजना का लाभ लाभार्थियों को भले ना मिला लेकिन यूपी के अधिकारियों ने लैपटॉप की लॉलीपॉप नई सरकार बनने से पहले तक चूसा। सूबे में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला तो माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारी अपने खर्चे, पर्चे और चर्चे सब समेटने में जुट गए। सत्ता बदलते ही शिक्षा विभाग के भ्रस्ट अफसरों ने लैपटॉप वितरण के बिलों को कार्यदायी संस्था यूपी इलेक्ट्रानिक कारपोरेशन से साथ मिलकर अंदर खाने बन्दर बाट करते हुए पास कर लिया। जबकि नई सरकार बनने में सिर्फ एक ही हफ्ते का समय बाकी था। ताकि आपको सनद रहे, ये वही योजना है, जिसके लाभार्थियों की योजना से मिले लैपटॉपों को बाज़ारों में बेचने की ख़बरें भी आई थीं। बिलों पर कुंडली मारकर बैठे अधिकारियों की कारगुजारी की बात जब हमने योजना के डायरेक्टर से बात की तो साहब कैमरे के सामने मुंह बिचकाते नज़र आए। फिलहाल पंजीरी से लेकर लैपटॉप घोटाले तक की खबर नई सरकार के संज्ञान में है। देखना होगा भ्रष्टाचार का पुष्टाहार और लैपटॉप के करोड़ों रुपये बिना पानी के डकार जाने वाले अफसरों पर कार्रवाई कब होती है।घोटालों और भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हैं यूपी में...19 मार्च को यूपी में नई सरकार बनी, तो पुरानी सरकार में बड़े बड़े पदों पर तैयनात अधिकारियों के हलक सूख गए। सीएम योगी वैसे ही साफ सुधरी छवि के नेता माने जाते हैं और ऊपर से उनका तेज तर्रार रवैया, अधिकारियों के लिए गले की फांस बन गया है। क्यों सीएम योगी ने गोमती रिवर फ्रंट से लेकर सूबे तमाम योजनाओं के घोटालों की जांच का आदेश दे दिया है। सीएम योगी ने सबसे पहले अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट गोमती रिवर फ्रंट की जांच के आदेश दिए। सेवानिवृत्त न्यायाधीश रिवर फ्रंट प्रॉजेक्ट में देरी और कथित अनियमितता की जांच करेंगे और 45 दिनों के भीतर जांच रिपोर्ट पेश करेंगे। 27 मार्च को सीएम योगी जब गोमती किनारे पहुंचे तो अधिलेश की इस परियोजना का बड़ा बारीकी से निरीक्षण किया। योगी ने अधिकारियों से नए सिरे से बजट का एस्टिमेट तैयार करने को कहा। उन्होंने अधिकारियों से पूछा कि, "गोमती का पानी गंदा क्यों है? क्या सारे पैसे पत्थरों में लगा दिए गए। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया कि गोमती नदी में एक भी नाला न गिरे यह सुनिश्चित किया जाए और मई तक गोमती का पानी साफ हो जाए। प्रोजेक्ट में देरी पर मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई। उन्होंने प्रोजेक्ट में अनियमितता की तरफ इशारा करते हुए अधिकारियों से पूछा कि रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट में छह किलोमीटर नदी को तीन मीटर गहराई में गहरा किया गया। उन्होंने कहा कि अगर इतनी मिट्टी निकली तो मिट्टी कहां फेंकी गईगौरतलब है कि गोमती रिवर फ्रंट परियोजना का लोकार्पण 16 नवंबर, 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किया था। परियोजना अभी भी अधूरी है। अखिलेश के इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर अब तक करीब 1,427 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। गोमती रिवर फ्रंट परियोजना के तहत गोमती नदी के दोनों किनारों का सौंदर्यीकरण हुआ है। नदी किनारे जॉगिंग ट्रैकसाइकल ट्रैक और बच्चों के पार्क बनाए गए हैं। बच्चों के लिए डिज्नी ड्रीम शो, टॉरनेडो फाउंटेंस, वॉटर थिएटर बनाए गए हैं। इसके अलावा योग केंद्र, विवाह भवन और ओपन थिएटर का भी निर्माण किया गया है। गोमती के किनारे क्रिकेट और फुटबॉल स्टेडियम भी बनाया गया है। लेकिन सीएम योगी का ये इशारा कि सारे पैसे पत्थरों में ही लगा दिए गए हैं। इसका सीधा मतलब है, पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार ने इस प्रोजेक्ट में भी जमकर धांधली की है।  

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