भाव के भूखे हैं भोलेनाथ, उन्हें
न तो चढ़ावे की चाहत है न ही अराधना की दरकार. शिव
शंकर को भोलेनाथ इसलिए कहा जाता है क्योंकि थोड़ी सी स्तुति, प्रार्थना
से भोलेनाथ जल्दी से अपने भक्त की पुकार सुन लेते है, भोलेनाथ
की शक्तियां जितनी अनंत, अपार और विराट हैं, उतना
ही सरल है उनका स्वरूप और स्वभाव, इसी वजह से भोलेनाथ भक्तों
के मन में समाया है.. तो आइए इस सावन के महीने में भगवान
शिव का गुणगान करतें है और आपको लेकर चलते है सोमनाथ जहां भगवान शिव स्वयं विराजते
हैं...
सोमनाथ में शिवलिंग के दर्शन मात्र से हो जाते हैं. भोले प्रसन्न और जब भोले प्रसन्न होते हैं तो भक्तों का बेड़ापार तो करते ही हैं साथ ही उसके सारे कष्टों को भी हर लेते है... हिन्दू धर्म में सोमनाथ का अपना एक अलग ही स्थान है. सोमनाथ मंदिर को 12 ज्योतिर्लिंगों में पहला स्थान प्राप्त है... इतना ही नहीं, कहते हैं महादेव अपने इस दर पर किसी भी भक्त खाली नहीं लौटने देते हैं...
गुजरात के सौराष्ट्र से होकर प्रभास क्षेत्र में
कदम रखते ही दूर से ही दिखाई देने लगता है ये ध्वज जो हजारों वर्षों से भगवान
सोमनाथ का यशगान करता आ रहा है... ध्वज को देखकर शिव की शक्ति
का, उनकी ख्याति का एहसास भक्तों को होने लगता है... आसमान को
स्पर्श करता मंदिर का यह शिखर देवाधिदेव की महिमा का बखान करता है... यह मंदिर
अपने भव्य रूप में महादेव भक्तों का कल्याण करते हैं... हिन्दू धर्म में सोमनाथ का
अपना एक अलग ही स्थान है. सोमनाथ मंदिर को 12 ज्योतिर्लिंगों में पहला स्थान
प्राप्त है... इतना ही नहीं, कहते हैं महादेव अपने इस दर
पर किसी भी भक्त खाली नहीं लौटने देते हैं... एक पौराणिक मान्यता के अनुसार सोमनाथ
मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग ही द्वादश ज्योतिर्लिंगों में स्थापित सबसे पहला
रूद्र ज्योतिर्लिंग है, जहां आकर अपना मन भगवान को अर्पण करने वालों की हर मुराद
पूरी होती है... उम्मीदों की खाली झोली लिए श्रद्धालु सुबह से ही भगवान सोमनाथ के
दर्शनों के लिए उमड़ने लगते हैं. यहां आने वाले हर श्रद्धालु के मन में य़े अटूट
विश्वास होता है कि अब उनकी सारी मुशीबतों का अंत हो जाएगा... यहां कोई अपने पापों
के प्रायश्चित के लिए आता है, तो कोई अपने लंबी आयु की
मन्नत लेकर सोमनाथ रूप भगवान शिव की आराधना करता है, तो कोई अपने नौनिहाल को
भगवान के दरबार में इस उम्मीद के साथ लेकर आता कि भगवान से उसे लंबे और निरोगी
जीवन का आशीर्वाद मिल सके... देश दुनिया की सीमा से परे हर रोज हजारों श्रद्दालु
यहां पहुंचते हैं... मंदिर में प्रवेश करते ही सबसे पहले भक्तों की भेंट भगवान के
प्रिय वाहन नंदी से होती है, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है
मानो नंदी भगवान के हर भक्त की अगुवायी कर रहे हों. मंदिर के अंदर पहुंच कर एक अलग
ही दुनिया में होने का एहसास होता है, जिस तरफ भी नजर पड़ती है
भगवान के चमत्कार का कोई न कोई रूप नजर आता है. मस्तक पर चंद्रमा को धारण किए
देवों के देव महादेव का सबसे पंचामृत स्नान कराया जाता है. स्नान के बाद बारी आती
के उनके भव्य और अलौकिक श्रृंगार की. शिवलिंग पर चदंन से ऊं अंकित किया जाता है और
फिर बेलपत्र अर्पित किया जाता है. शिव भक्ति में डूबे भक्त अपने आराध्य का यह
अलौकिक रूप देखते ही रह जाते हैं.
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार सोमनाथ मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग ही द्वादश ज्योतिर्लिंगों में स्थापित सबसे पहला रूद्र ज्योतिर्लिंग है... जहां आकर अपना मन भगवान को अर्पण करने वालों की हर मुराद पूरी होती है... कोई अपने पापों के प्रायश्चित के लिए आता है, कोई सुख समद्धि की मन्नत लेकर सोमनाथ के रूप में भगवान शिव की आराधना करता है, तो कोई अपने नौनिहाल को भगवान के दरबार में इस उम्मीद के साथ लेकर आता कि भगवान से उसे लंबे और निरोगी जीवन का आशीर्वाद मिल सके...
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार
सोमनाथ मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग ही द्वादश ज्योतिर्लिंगों में स्थापित सबसे
पहला रूद्र ज्योतिर्लिंग है... जहां आकर अपना मन भगवान को अर्पण करने वालों की हर
मुराद पूरी होती है... उम्मीदों की खाली झोली लिए
श्रद्धालु सुबह से ही भगवान सोमनाथ के दर्शनों के लिए उमड़ने लगते हैं... यहां आने वाले हर
श्रद्धालु के मन में अटूट विश्वास होता है कि अब उनकी सारी मुसीबतों का अंत हो
जाएगा... कोई अपने पापों के प्रायश्चित के लिए आता है, कोई सुख समद्धि की मन्नत लेकर सोमनाथ के रूप
में भगवान शिव की आराधना करता है, तो कोई
अपने नौनिहाल को भगवान के दरबार में इस उम्मीद के साथ लेकर आता कि भगवान से उसे
लंबे और निरोगी जीवन का आशीर्वाद मिल सके... देश दुनिया की सीमा से परे हर रोज हजारों श्रद्दालु यहां
पहुंचते हैं... इस ज्योतिर्लिंग को लेकर मान्यता
यह भी है कि द्वापर में भगवान श्री कृष्ण ने इस मन्दिर का निर्माण चन्दन की लकड़ी
से किया था लेकिन मोक्ष और मुक्ति की यह कथा द्वापर से भी पहले ब्रह्मा के पुत्र
दक्ष प्रजापति के समय से आरम्भ हो चुकी थी... कहते हैं दक्ष की
सभी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से हुआ था, लेकिन चंद्रमा ने 27 कन्याओं में से केवल एक रोहिणी को ही
पत्नी का दर्जा दिया... दक्ष ने दामाद को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन जब उन्होंने दक्ष की बात नहीं मानी
तो उन्होंने चंद्रमा को क्षय रोगी होने का श्राप दे दिया.. दक्ष के श्राप से
चंद्रदेव की कांति धूमिल पड़ने लगनी.... परेशान
होकर चंद्रमा ब्रह्मदेव के पास पहुंचे.. चंद्र
देव की परेशानी सुन कर ब्रह्मा ने उनसे कहा कि उन्हें कुष्ठ रोग से सिर्फ महादेव
ही मुक्ति दिला सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें सरस्वती
नदी के मुहाने पर स्थित अरब सागर में स्नान कर भगवान शिव की उपासना करनी होगी... निरोग
होने के लिए चंद्रमा ने कठोर तपस्या की, जिससे खुश होकर महादेव ने उन्हें श्राप से मुक्त कर दिया... जिसके
बाद शिवभक्त चंद्रदेव ने यहां शिव जी का स्वर्ण मंदिर बनवाया और उसमें जो
ज्योतिर्लिंग स्थापित हुआ उसका नाम चंद्रमा के स्वामी यानी सोमनाथ पड़ गया... चंद्रमा ने इसी स्थान पर अपनी कांति वापस
पायी थी... इसलिए इस क्षेत्र को प्रभास
पाटन भी कहा जाने लगा... यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है... चैत्र, भाद्र और कार्तिक महीने में
यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना गया है... इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगी रहती है... सोमनाथ
में तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम
भी है.. कथाओं में त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व बताया गया है. कहा जाता है इस
पृथ्वी पर 5 स्थान ऐसे
हैं जहां अमरत्व की प्राप्ति हो सकती है उन 5 स्थानों में से एक है सोमनाथ
सोमनाथ मंदिर की दीवारों पर बनी मूर्तियां मंदिर की भव्यता को दर्शाती है..
मंदिर की बनावट और मंदिर की दीवारों पर की गई शिल्पकारी शिव भक्ति का उत्कृष्ठ
नमूना है... लेकिन सोमनाथ मंदिर का इतिहास बताता है कि समय-समय पर यहां कई बार आक्रमण
हुए.. इतिहास के मुताबिक मंदिर पर कुल 17 बार आक्रमण किया गया और
हर बार मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया गया,.. हलांकि मंदिर पर किसी भी कालखंड का
कोई प्रभाव देखने को नहीं मिलता...
सोमनाथ मंदिर की दीवारों पर
बनी यह मूर्तियां मंदिर की भव्यता को दर्शाती है। मंदिर की बनावट और मंदिर की
दीवारों पर की गई शिल्पकारी शिव भक्ति का उत्कृष्ठ नमूना है... लेकिन सोमनाथ मंदिर का इतिहास
बताता है कि समय-समय पर यहां कई
बार आक्रमण हुए.. इतिहास के मुताबिक मंदिर पर
कुल 17 बार आक्रमण किया गया
और हर बार मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया गया,.. हलांकि मंदिर पर किसी भी
कालखंड का कोई प्रभाव देखने को नहीं मिलता... कहते हैं सृष्टि की रचना के समय भी यह शिवलिंग मौजूद था..
ऋग्वेद में भी इसके महत्व का बखान किया गया है.. इतिहासकारों
के मुताबिक महमूद गजनवी के हमले के बाद इक्कीस मंदिरों का निर्माण किया गया.. यह
मन्दिर पहली बार कब बना इसका कोई ऐतेहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है पर इतिहसकारों के
मुताबिक इस मंदिर को सन् 649 ई में
वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने दुबारा बनवाया था.. इतिहास गवाह है एक बार नहीं
दर्जनों बार सोमनाथ मन्दिर पर आक्रमण किया गया और मंदिर को नेस्तनाबूत करने की
कोशिश की गई.. सन् 1024 में महमूद ग़ज़नवी ने सोने-चांदी को लूटने के नियत से उसने मन्दिर में तोड़-फोड़ की थी.. लूट के
दौरान जब महमूद ग़ज़नवी ने शिवलिंग को नहीं तोड़ पाया, तब उसने वहां आग लगवा कर मंदिर को क्षति
पहुंचाने की कोशिश की... सोमनाथ मन्दिर में नीलमणि के छप्पन खम्भे लगे हुए थे.. उन
खम्भों में हीरे-मोती के अलावा तरह तरह के रत्न जड़े हुए थे.. उन बहुमूल्य रत्नों
को लुटेरों ने लूट लिया और मन्दिर को भी नष्ट-भ्रष्ट कर दिया.. महमूद ग़ज़नवी के
मन्दिर लूटने के बाद राजा भीमदेव ने पुनः मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कराया.. सन्
1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मन्दिर की पवित्रीकरण में भरपूर सहयोग किया.. 1168
में विजयेश्वर कुमारपाल ने जैनाचार्य हेमचन्द्र के साथ सोमनाथ की यात्रा कर मन्दिर
का बहुत कुछ सुधार करवाया था... मुगल शासकों ने भी मंदिर के साथ बहुत दुराचार किया
और मन्दिर को नष्ट-भ्रष्ट करते रहे.. इतना नहीं सन् 1297 में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति
नुसरत खां ने आक्रमण कर पवित्र शिवलिंग को खण्डित कर दिया था.. मन्दिर को हिन्दु
राजाओं द्वारा बनवाने और मुस्लिम राजाओं द्वारा तोडने का क्रम जारी रहा... औरंगजब
के काल में भी मन्दिर को दो बार तोड़ा गया.. मुगलकाल 1665 और 1706 में
दुबारा आक्रमण करके मन्दिर में पूजा कर रहे लोगों की हत्या कर दी गयी थी.. आजादी के बाद राष्ट्र के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र
प्रसाद ने देश के स्वाभिमान को जाग्रत करते हुए पुनः सोमनाथ मन्दिर का भव्य
निर्माण कराया.. और आज पुनः भारतीय-संस्कृति और सनातन-धर्म की ध्वजा के रूप में
सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग ‘सोमनाथ मन्दिर’ के रूप में शोभायमान है..
दुनिया भर में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं..
सभी 12 ज्योतिर्लिंग में से सबसे पहला ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य के सौराष्ट्र नगर में
अरब सागर के तट पर स्थित है और यह सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है..
इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि जब से सृष्टि कायम है तब से ही यहां
भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग स्थित है..
दुनिया भर में भगवान शिव के 12
ज्योतिर्लिंग हैं.. सभी 12
ज्योतिर्लिंग
में से सबसे पहला ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य के सौराष्ट्र नगर में अरब सागर के तट
पर स्थित है और यह सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है.. इस ज्योतिर्लिंग
के बारे में कहा जाता है कि जब से सृष्टि कायम है तब से ही यहां भगवान शिव के
ज्योतिर्लिंग स्थित है.. इस ज्योतिर्लिंग के बारे
में कई ऐसी महत्वपूर्ण बातें है जो बहुत कम लोग जानते हैं.. सोमनाथ मंदिर की गिनती 12
ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है.. जिसका निर्माण स्वंय
चन्द्रदेव ने किया था.. सोमनाथ में बने इस ज्योतिर्लिंग का उल्लेख ऋग्वेद में भी
मिलता है.. यह मंदिर हिंदू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का
प्रतीक रहा है.. श्रीकृष्ण की द्वारका सोमनाथ से
करीब दो सौ किलोमीटर दूरी पर स्थित है। सोमनाथ का अर्थ है सोम के नाथ.. हिन्दू
धर्म में सोमनाथ का अपना एक अलग ही स्थान है. इतना ही नहीं, कहते हैं महादेव अपने इस दर
पर किसी भी भक्त को खाली नहीं लौटने देते हैं...
गुजरात में भगवान शिव के सोमनाथ मंदिर में गैर
हिंदुओं को अब प्रवेश के लिए प्रबंधन से विशेष अनुमति लेनी होती है। मंदिर प्रबंधन
के मुताबिक सुरक्षा की दृष्टि से यह कदम उठाया गया है.. सोमनाथ मंदिर हिंदुओं की
आस्था का एक प्रमुख केंद्र है और इसे जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई है... यह मन्दिर गोमती नदी के तट पर
स्थित है.. गोमती नदी में स्नान का अपना अलग महत्व है
इस नदी का जल सूर्योदय पर बढ़ता जाता है और सूर्यास्त पर घटता जाता है, जो सुबह सूरज निकलने से पहले मात्र एक
डेढ़ फीट ही रह जाता है.. स्कंद पुराण के प्रभासखंड में
उल्लेख किया है कि सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का नाम हर नए युग के साथ बदल जाता है.. कहा जाता
है कि जब वर्तमान सृष्टि का अंत हो जाएगा और ब्रह्मा जी नई सृष्टि करेंगे तब
सोमनाथ का नाम 'प्राणनाथ' होगा..
कहते हैं सोमनाथ की पूजा और उपासना करने से उपासक को क्षय रोग से मुक्ति मिलती है...
ऐसा माना जाता है कि यहां बने कुंड में शिव और ब्रह्मा निवास करते हैं.. सोमनाथ मंदिर में स्थित चन्द्रकुण्ड
मनुष्यों के पाप नाश करने वाले के रूप में भी प्रसिद्ध है.. इसलिए
इसे पापनाशक-तीर्थ भी कहते हैं.. जो मनुष्य चन्द्रकुण्ड में
स्नान करता है, वह सब प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है..
कहते हैं सोमनाथ की पूजा और
उपासना करने से उपासक को क्षय रोग से मुक्ति मिलती है... ऐसा माना जाता है कि यहां
बने इस कुंड में शिव और ब्रह्मा निवास करते हैं.. इस पृथ्वी पर यह चन्द्रकुण्ड
मनुष्यों के पाप नाश करने वाले के रूप में भी प्रसिद्ध है.. इसलिए इसे ‘पापनाशक-तीर्थ’ भी कहते हैं.. जो मनुष्य इस
चन्द्रकुण्ड में स्नान करता है, वह सब प्रकार के पापों से मुक्त
हो जाता है.. इस कुण्ड में बिना नागा किये छः माह तक स्नान करने से क्षय और असाध्य
रोग भी नष्ट हो जाते हैं.. सोमनाथ मंदिर के प्रांगण में रात 7.30 से 8.30 तक एक
घण्टे का लाइट एण्ड साउण्ड शो चलता है जिसमें सोमनाथ मन्दिर के इतिहास का बड़ा ही
खूबसूरत वर्णन किया जाता है.. सोमनाथ मंदिर में लाइट एंड साउंड शो का शुभारंभ इसी
साल अप्रेल से हुआ है... पर्यटकों को मंदिर के इतिहास और संस्कृति के विषय में इस
लाइट एंड साउंड शो के जरिए अवगत कराया जाता है.. गुजरात पर्यटन के ब्रांड ऐम्बेसडर
अमिताभ बच्चन ने इस शो में अपनी आवाज दी है। इसके अलावा 3 डी प्रोजेक्शन एवं
मैपिंग, लाइटिंग डिजाइन और प्रोग्रामिंग
भी किया गया है.. 35 मिनट के इस शो में दो भाषाओं अंग्रेजी और हिंदी में विशेष
इफैक्टस के जरिए जानकारी दी जाता है.. शो के दौरान एक साथ एक हजार पर्यटक इस शो
देख सकते हैं..
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