रामेश्वरम हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थस्थल है....यह तमिलनाडु के
रामनाथपुरम जिले में स्थित है....यह तीर्थ हिन्दुओं के चार पवित्र धामों में से एक
है...यहां स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है....
भारत के उत्तर में काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् धाम की है... रामेश्वरम मंदिर चेन्नई से लगभग
सवा 425 मील दक्षिण-पूर्व में है....यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों
ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार का द्वीप है...यह द्वीप एक समय में भारत की
मुख्य भूमि के साथ जुड़ा हुआ था, समय के साथ वह चारों ओर
पानी से घिरकर एक टापू बन गया...जिस स्थान पर यह टापु मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ था,
वहां इस समय ढाई मील चौड़ी एक खाड़ी है....शुरू में इस खाड़ी को
नावों से पार किया जाता था...बताया जाता है, कि बहुत पहले
धनुष्कोटि से मन्नार् द्वीप तक लोग पैदल भी जाते थे....लेकिन सन 1480 में एक
चक्रवाती तूफान से उठी सागर की लहरों ने इस मिलाने वाली कड़ी को काट डाला....आज से
लगभग 400 वर्ष पहले कृष्णप्पनायकन नाम के एक राजा ने वहां पत्थर का बहुत बड़ा पुल
बनवाया... अंग्रेजो के आने के बाद उस पुल की जगह पर रेल पुल बनाने का विचार
हुआ...उस समय तक पुराना पत्थर का पुल लहरों की मार से टूट चुका था....एक जर्मन
इंजीनियर की मदद से उस टूटे पुल की जगह रेल के लिए पुल बनवाया गया.... आज यह रेलवे
पुल रामेश्वरम् को भारत से जोड़ता है...यह पुल पहले बीच से जहाजों के निकलने के
लिए खुलता था....और आज इस स्थान पर दक्षिण से उत्तर की और हिंद महासागर का पानी
बहता दिखाई देता है....यहां समुद्र में लहरे बहुत कम होती है.....और शांत बहाव को
देखकर यात्रियों को ऐसा लगता है, कि मानो वह किसी बड़ी नदी
को पार कर रामेश्वरम् मंदिर जा रहे हों....रामेश्वरम मंदिर ज्योतिर्लिंग रामायण और
राम की श्रीलंका से विजयी वापसी के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है. रामेश्वर का मतलब
संस्कृत में "राम के भगवान", शिव, रामनाथस्वामी मंदिर के इष्टदेव की एक उपाधि है.
रामेश्वरम मंदिर समुद्र की गोद में बसा एक बेहद खूबसूरत दर्शनीय स्थल
होने के साथ साथ तीर्थ स्थल भी है जो कि चार धामों में से एक धाम है। यहाँ हर साल
हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु अपनी आस्थाओं में लिपटी भगवान के प्रति प्रेम को
दर्शाने आते हैं....रामेश्वरम तमिलनाडु का एक आकर्षक शहर चेन्नई से तक़रीबन 592 किलोमीटर की दूरी पर है....कहा जाता है कि जब भगवान
राम लंका को जीतकर वापस लौटे तो उन्होंने भगवान शिव के प्रति अपनी प्रेम भावना को
दर्शाने के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया..... यह मंदिर विश्व के बेहतरीन
कलात्मक शैली और आस्थाओं से सराबोर मंदिरों में से एक माना जाता है....अगर
प्राकृतिक सौंदर्य की बात कही जाए... तो रामेश्वरम का ज़िक्र होना लाज़मी है...
मंदिर में हुए कलाकारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है... पश्चिमी टावर 78 फीट ऊंचा
है और पूर्वी टॉवर 126 फीट ऊंचा है और नौ स्तरों से बना है.
वहाँ एक भव्य मूलस्थान के सामने नंदी है.सीपें, शंख और
कोड़ियाँ आदि यहाँ समुद्र में बहुत मिलती हैं जो पर्यटकों को ठहरने को मजबूर करती
हैं। अगर आप रामेश्वरम आने की सोच रहे हैं तो यहाँ समुद्र में सफ़ेद रंग का बड़ियास
मूंगा भी आपको मिलेगा। वाकई रामेश्वरम का खूबसूरत नज़ारा आँखों में कैद करने जैसा
होता है। चेन्नई से लगभग 592 किलोमीटर की दूरी पर स्थित
रामेश्वरम की पवित्र भूमि भारतीय प्रायद्वीप के पूर्वी तट पर समुद्र की गोद में
स्थित है। रामेश्वरम की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां के मंदिरों की कलात्मकता
और रमणीक सागर तट के मनलुभावन दृश्य सहसा ही सैलानियों का मन मोह लेते हैं.. इन
कलाकृतियों की खूबी यह है कि यह वर्षों पुरानी होने के बावजूद आज तक अपनी चमक−दमक
बरकरार रखे हुए हैं। विदेशी सैलानियों के लिए तो यह कलाकृतियां विशेष आकर्षण का
केन्द्र होती हैं इस भव्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी
में करवाया गया था। द्रविड़ कला के बेजोड़ नमूने के रूप में प्रसिद्ध इस मंदिर का
गलियारा देश भर के सभी मंदिरों के गलियारों से बड़ा है। यह गलियारा पूर्व से
पश्चिम तक 197 मीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक 133 मीटर लंबा है। माना जाता है कि रामेश्वरम मंदिर की सीमा अभी यहीं खत्म
नहीं होती है, इस मंदिर में 22 कुएं
तथा द्वार पर 38.4 मीटर का गोदाम भी है। कहा जाता है कि
रामेश्वरम मंदिर की ऐतिहासिक महत्व की सुंदर कलाकृतियां आज भी मौजूद हैं।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक कहा जाता है कि जब
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम.. सीता को लेने लंका जा रहे थे... तभी उन्हें रास्ते
में प्यास लगी...पानी पीते समय उन्हे याद आया कि उन्होंने भगवान शंकर का दर्शन
नहीं किया है और बिना दर्शन किए वह कैसे जल ग्रहण कर सकते हैं... तब श्रीराम ने
विजय प्राप्ति के लिए समुद्र किनारे बालू का शिवलिंग स्थापित करके पूजन किया था, क्योंकि भगवान
राम जानते थे कि रावण भी शिव का भक्त है और उसे हरा पाना कठिन काम है.. इसलिए
भगवान श्रीराम ने शिव जी की आराधना की.. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से भगवान शिव
प्रसन्न होकर माता पार्वती के साथ उन्हें दर्शन दिया और उन्हें विजयी होने का
आशीर्वाद दिया... इस दौरान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने शिवजी से लोक कल्याण के
लिए उसी स्थान पर शिवलिंग के रूप में सदा के लिए निवास करने की प्रार्थना की...
जिसे भगवान शंकर ने स्वीकार कर लिया.. और रामेश्वरम में विराजमान हो गए..... रामेश्वरम
मंदिर को लेकर एक और मान्यता यह है कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, रावण का वध
करके अयोध्या लौट रहे थे, जब भगवान श्री राम लंका पर विजय प्राप्त कर लौट रहे थे तो उन्होंनें
गंधमादन पर्वत पर विश्राम किया वहां पर ऋषि मुनियों ने श्री राम को बताया कि उन पर
ब्रह्महत्या का दोष है जो शिवलिंग की पूजा करने से ही दूर हो सकता है.. इसके लिये
भगवान श्री राम ने हनुमान से शिवलिंग लेकर आने की कही। हनुमान तुरंत कैलाश पर
पहुंचे लेकिन वहां उन्हें भगवान शिव नजर नहीं आये.. शिव लिंग प्रप्ति के लिए
हनुमान तप करने लगे उधर मुहूर्त का समय बीता जा रहा था। अंतत: भगवान शिवशंकर ने
हनुमान की पुकार को सुना और हनुमान ने भगवान शिव से आशीर्वाद सहित शिवलिंग प्राप्त
किया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी.. मुहूर्त निकल जाने के भय से माता सीता ने बालू
से ही विधिवत रुप से शिवलिंग का निर्माण कर श्री राम को सौंप दिया जिसे उन्होंनें मुहूर्त
के समय स्थापित किया। जब हनुमान वहां पहुंचे तो देखा कि शिवलिंग तो पहले ही
स्थापित हो चुका है इससे उन्हें बहुत बुरा लगा। श्री राम हनुमान की भावनाओं को समझ
रहे थे उन्होंनें हनुमान को समझाया भी लेकिन वे संतुष्ट नहीं हुए तब श्री राम ने
कहा कि स्थापित शिवलिंग को उखाड़ दो तो मैं इस शिवलिंग की स्थापना कर देता हूं।
लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी हनुमान ऐसा न कर सके और अंतत: मूर्छित होकर गंधमादन
पर्वत पर जा गिरे होश में आने पर उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो श्री राम ने
हनुमान द्वारा लाये शिवलिंग को भी नजदीक ही स्थापित किया और उसका नाम हनुमदीश्वर
रखा.. रामेश्वरम और हनुमदीश्वर शिवलिंग की प्रशंसा भगवान श्रीराम ने स्वयं की
है....
4 दिशाओं में स्थित 4 धाम हिंदुओं
की आस्था के केंद्र ही नहीं बल्कि पौराणिक इतिहास का बखान भी करता हैं.. जिस
प्रकार धातुओं में सोना, रत्नों में हीरा, प्राणियों में इंसान अद्भुत होते हैं उसी तरह समस्त तीर्थ स्थलों में चार
धामों की अपनी एक अलग महता है... चार
धामों में से एक दक्षिण भारत का काशी माना जाता है रामेश्वरम.. यह सिर्फ चार धामों
में एक प्रमुख धाम ही नहीं है बल्कि यहां स्थापित शिवलिंग को 12 ज्योतिर्लिंगों
में से एक माना जाता है... रामेश्वरम मंदिर के पास ही सागर में आज भी आदि-सेतु के
अवशेष दिखाई देते हैं.. कहा जाता है कि लंका पर चढ़ाई करने से पहले वानर सेना की
मदद से इस सेतु का निर्माण किया गया था लेकिन लंकाविजय के बाद जब विभीषण को
सिंहासन सौंप दिया गया तो विभिषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर इस सेतु को
तोड़ दिया गया था.. आज भी लगभग 48 किलोमीटर लंबे इस सेतु के अवशेष मिलते हैं..
मंदिर के अंदर 24 कुएं हैं जिन्हें तीर्थ कहा जाता है.. इनके बारे में मान्यता है
कि इन्हें प्रभु श्री राम ने अपने अमोघ बाण से बनाकर उनमें तीर्थस्थलों से पवित्र
जल मंगवाया था.. यही कारण है कि इन कुओं का जल मीठा है.. कुछ कुएं मंदिर के बाहर
भी हैं लेकिन उनका जल खारा है.. इन चौबीस कुओं का नाम भी देश भर के प्रसिद्ध
तीर्थों और देवी देवताओं के नाम पर रखा गया है.. इसके अलावा मंदिर के आस-पास और भी
बहुत सारे तीर्थ हैं जिन्हें देखा जा सकता है.. मान्यता तो यह भी है कि रामेश्वरम
में भगवान शिव की विधिवत पूजा करने पर ब्रह्महत्या जैसे दोष से भी मुक्ति मिल जाती
है.. यहां शिव और पार्वती की प्रतिमाओं की प्रत्येक वर्ष शोभा यात्रा निकाली जाती
है....इस अवसर पर सोने और चांदी के वाहनों पर भगवान शिव और पार्वती को बैठाकर उनकी
सवारी निकाली जाती है.. वार्षिक उत्सव के मौके पर ज्योतिर्लिंग
को चांदी के त्रिपुंड से सजाया जाता है.... रामेश्वरम, तमिलनाडू राज्य
में स्थित एक शांत शहर है और यह करामाती पंबन द्वीप का हिस्सा है... रामेश्वरम, श्री लंका के
मन्नार द्वीप से 1403 किमी और चेन्नई से करीब 592 किमी की दूरी पर स्थित है.... रामेश्वरम
से कन्याकुमारी की दूरी 311 किमी के करीब है और यहां से तिरुपति के प्रसिद्ध मंदिर
की दूरी 632 किमी है.. देश-दुनिया के किसी भी कौने से किसी भी माध्यम से रामेश्वरम पंहुचना
बिल्कुल आसान है.. इसके लिये पहले चेन्नई फिर त्रिचिनापल्ली होते हुए रामेश्वरम तक
पहुंचा जाता है.. रामेश्वरम रेल यातायात के माध्यम से चेन्नई
सहित दक्षिण भारत के अन्य प्रसिद्ध शहरों के साथ भी सीधा जुड़ा हुआ है.. देश के कई
हिस्सों से यहां पहुंचने के लिए ट्रेन की सुविधा उपलब्ध है.. भारतीय रेलवे ने
कुछ ऐसी सुविधाऐं भी दे रखी हैं जिससे आप कन्याकुमारी, रामेश्वरम और
तिरुपति के दर्शन एक साथ कर सकते हैं....वायुसेवा के लिए यहां का सबसे नजदीकी
एयरपोर्ट, मदुरई है... रामेश्वरम में गर्मियों का मौसम काफी गर्म और सर्दियां
सुखद होती है...सर्दियों के दौरान रामेश्वरम की सैर उत्तम होती है. यहां से कुछ
दुरी पर भारत के राष्ट्रपति और प्रसिद्ध वैज्ञानिक ए.पी.जे.अब्दुल कलाम का घर भी
है...और यहाँ उनके ही नाम से एक अति सुन्दर बाजार भी है....रामेश्वरम् वाकई एक
अच्छा तीर्थ स्थान होने के साथ साथ एक मनमोहक स्थल भी है....जो हमें त्रेतायुग का
अनुभव करा ही देता है...रामेश्वरम का चप्पा चप्पा प्रभु श्रीराम का गुणगान करता है
और यह एक अटल सत्य है....
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