हिरोशिमा
जापान का आसमां और 6 अगस्त 1945 का दिन....समय सुबह के 8 बजकर 15 मिनट.. वो सुबह भी हिरोशिमा के लोगों के लिए
आम सुबह जैसी ही थी...अपने टारगेट की ओर बढता हुआ अमेरिकी B-29 बॉम्बर विमान 'एनोला गे'...जिसमें लदा था एक ऐसा विनाशकारी बम्ब जिसे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति
रुजवेल्ट ने नाम दिया था ‘लिटिल बॉय’...जो
बनने वाला था अबतक का सबसे बड़ा मैन मेड डिजास्टर...निशाना था जापान का शहर
हिरोशिमा...जिसपर अमेरिका ने अबतक कोई भी हमला नहीं किया था... हिरोशिमा बनने वाला
था मानव इतिहास के सबसे काले दिन का गवाह... आसमान साफ था, कोई
बादल नहीं था... हिरोशिमा के लोगों के लिए ये सुबह हर सुबह जैसी ही थी... इस बात
से बेखबर कि वहां सब कुछ चंद पलों में ही खत्म होने वाला है... लोग अपने रोजमर्रा
के कामों को निपटा रहे थे... इतिहास तो लिखा जाना अभी भी बाकी था, लेकिन इसकी इबारत तैयार हो चुकी थी...तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी
ट्रूमैन मंजूरी दे चुके थे एक ऐसे गोपनीय अभियान को...जो जापान को द्वितीय विश्व
युद्ध में मित्र राष्ट्रों के सामने अपने घुट69ने टेकने पर मजबूर करने वाला था...
हिरोशिमा जापान का एक बंदरगाह शहर था...जो कि जापानी सेना को रसद मुहैया कराने का
मुख्य केंद्र था... ये शहर सामरिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण शहर था....यहां से
ही जापानी सेना का संचार तंत्र संचालित होता था....उस समय हिरोशिमा में वक्त था
सुबह के सवा आठ बजे...मित्र देश ये बात अच्छे से जानते थे कि... हिरोशिमा को
ध्वस्त करके जापान को आसानी से धराशाही किया जा सकता है....जापान की कमर तोडी जा
सकती थी...और अमेरीका ने किया भी कुछ ऐसा ही... रात या कहलें कि सुबह के 2 बजकर 45
मिनट पर अमेरिकी वायुसेना के बमवर्षक बी-29 'एनोला गे' ने उडान भरी...दिशा थी पश्र्चिम की ओर और लक्ष्य था जापान...हथियार था
लिटिल बॉय जिसकी क्षमता 20 हजार टन टीएनटी के बराबर थी...जो उस समय तक इस्तेमाल
में लाए गए सबसे बड़े बम से दो हजार गुना अधिक शक्तिशाली था... 'एनोला गे' की कमान पायलट कर्नल पॉल डब्लू तिब्बेत्स
के हाथ में थी.... 71 साल पुरानी यह घटना मानव इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज
है। ये सेकंड वर्ल्ड वॉर का दौर था, जिसमें कब क्या हो जाए,
कुछ कहा नहीं जा सकता था.. इस परमाणु हमले का कोडनेम लिटिल ब्वॉय था,
लेकिन यह लिटल ब्वॉय जापान और इंसानियत को बड़ी गहरी चोट दे गया..
लिटिल ब्वॉय को सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान अमेरिका के मैनहट्टन प्रोजेक्ट के तहत
लॉस अलामोस में तैयार किया गया था.. तकरीबन 4000 किग्रा वजनी इस बम की लंबाई तीन
मीटर और व्यास 71 सेंटीमीटर तक था.. इस बम ने अपनी विस्फोटक क्षमता यूरेनियम -235
की न्यूक्लियर फिशन प्रोसेस से हासिल कर ली थी। इसकी विध्वंसक क्षमता 13-18 किलोटन
टीएनटी के बराबर थी..
आखिरकार एनोला गे' ने
लिटिल बॉय को हिरोशिमा के आसमान में गिरा दिया...'एनोला गे'
की कमान पायलट कर्नल पॉल डब्लू तिब्बेत्स कहते हैं, 'कुछ ऐसा था जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, क्या
कहूं बम गिराने के बाद चंद सेकेंड के लिए मैंने पलट कर उसे देखा और आगे चल दिया'...पैराशूट के ज़रिए इस बम को गिराया गया और जमीन से 580 मीटर की ऊंचाई पर
इसका विस्फोट किया गया... इस विस्फोट के चलते 10 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में
गहरे गड्ढे बन गए... विस्फोट के बाद हिरोशिमा में जगह-जगह आग लग गई और यह आग तीन
दिनों तक जारी रही... विस्फोट होते ही 60 हज़ार से 80 हज़ार लोगों की मौत तुरंत हो
गई.... बम धमाके से इतनी गर्मी पैदा हुई कि लोग सीधे जल रहे थे... जो लोग आग में
झुलसने से बचे वे परमाणु विकिरण संबंधी बीमारियों के चलते मारे गए... इस विस्फोट
में कुल 1,35,000 लोगों की मौत हुई
थी... चारों तरफ लाशों का ढेर पड़ा हुआ था... जले हुए लोग कराह रहे थे, हिरोशिमा
स्टेशन भी भरभरा कर गिर चुका था... छह अगस्त 1945 को जो लोग भी हिरोशिमा में थे वो
या तो मारे जा चुके थे...और जो बच गए उन पर रेडियो विकिरण का असर हुआ...ये एक ऐसा
असर था जो कि आने वाली पीढ़ियों पर भी दिखाई देने वाला था... इस घटना को मानव
इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक माना जाता हो...उसके लिए न तो कभी
अमेरिका ने माफी मांगी और न ही अब कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति मांगेंगा...इसकी वजह
ये है कि अमेरिका और वहां के लोगों का मानना है कि...अमेरिका ने जापान पर परमाणु
हमला करके अपने लाखों नागरिकों की जानें बचाई और उनके नागरिकों की रक्षा के लिए
उठाया गया यह कदम सही था...अमेरकी नागरिकों का ये भी मानना है कि अगर अमेरिका ये
कदम नहीं उठाता...तो जापान द्वितीय विश्व युद्ध की इस जंग को आगे भी जारी
रखता...और इससे दोनों ही देशों के और भी ज्यादा नागरिक मारे जाते...लेकिन ये दोनों
ही तर्क खोखले नजर आते हैं... 1946 में अमेरिकी सरकार की खुद की रिपोर्ट में कहा
गया था कि अगर अमेरिका परमाणु हमला न भी करता तो सिर्फ हवाई हमलों से भी जापान को
आत्मसमर्णण कराया जा सकता था... वैसे भी अगर अमेरिका को जापान को आत्मसमर्पण कराना
ही था तो उसे बम सैन्य ठिकानों या किसी बाहरी इलाके में गिराना चाहिए था न कि आम
नागरिकों के ऊपर... कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक अमेरिका हिरोशिमा और नागासाकी पर
परमाणु बम गिराकर किसी शहर के ऊपर इस बम का टेस्ट करना चाहता था. उसने जापान की
राजधानी टोक्यो पर हमला इसलिए नहीं किया क्योंकि वहां पहले ही काफी बमबारी हो चुकी
थी. ऐसे में परमाणु बम से होने वाली तबाही और पहले से हुई तबाही में अंतर कर पाना
मुश्किल होता. रिपोर्ट के मुताबिक जापानी शहर टोक्यो पर भी परमाणु बम गिराने की
योजना इसलिए टाली गई क्योंकि वहां एक टॉप अमेरिका अधिकारी, सेक्रेटरी
ऑफ वॉर हेनरी स्टिमसन ने अपना हनीमून मनाया था और वे नहीं चाहते थे कि शहर की
सांस्कृतिक धरोहरों को नुकसान पहुंचाया जाए... इसलिए हिरोशिमा और नागासाकी को चुना
गया.
6 अगस्त 1945 की तारीख अमेरिका और जापान की दुश्मनी के सबसे बुरे दिन
की यादें ताजा करती है.. इस दिन अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर परमाणु बम
गिराया था.. परमाणु बम गिराने के लिए हिरोशिमा को इसलिए निशाना बनाया गया था
क्योंकि अमरीकी वायुसेना के हमलों में इसे टारगेट नहीं किया गया था... ऐसे में
परमाणु बम की विध्वंस क्षमता का पता लगाना आसान होता... यह जापान का अहम सैन्य
ठिकाना भी था. इसके अलावा ज़्यादा आबादी वाले शहरों को निशाना बनाने से परहेज किया
गया था... कहा जाता है कि परमाणु बम का निर्माण 1941 में तब शुरू हुआ जब नोबेल
विजेता वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन रूजवेल्ट को
इस प्रोजेक्ट को फंडिंग करने के लिए राजी किया। उस समय खुद आइंस्टीन ने भी नहीं
सोचा होगा कि इसके इतने घातक परिणामों हो सकते हैं.. हिरोशिमा दुनिया के पहले
परमाणु हमले में जीवित बचे लोगों के जहन में आज भी वो जख्म ताजा है...जिस दिन
अमेरिका ने हिरोशिमा पर वो खतरनाक परमाणु हमला किया था...बेशक आज इनकी संख्या वक्त
के साथ कम होती जा रही है लेकिन सात दशकों से ज्यादा वक्त बीतने के बाद भी उस घटना
की भयावह यादें आज भी ताजा है...उस घटना को याद करते हुए आज भी लोग सिहर उठते
हैं...80 साल की एमीको ओकाडा परमाणु हमले की जगह से करीब 3 किलोमीटर दूर थी...उसके
बावजूद वो हमले में जख्मी हो गई...जबकि उनकी बहन की मौत हो गई...उस हमले के दिन को
याद कर वो कहती हैं "आसमान पर अचानक एक रोशनी दिखी और मैं जमीन पर गिर गई...मुझे
नहीं पता कि धरती पर क्या चल रहा था...हर तरफ आग ही आग थी...लोगों में इंसानों
जैसा कुछ बचा नहीं था...उनकी त्वचा ढीली पड़ रही थी...कुछ बच्चों की आंखों की
पुतलियां तक बाहर आ गई थीं"..."मुझे आज भी डूबते सूर्य की चमक को देखने
से नफरत है... ये मुझे उस दिन की याद दिलाता है जो मुझे काफी दर्द देता है... उस
हमले का दुष्परिणाम ये हुआ कि कई बच्चे जो हमले में बचाए गए वो सभी अनाथ हो गए...देशभर
से कई बदमाश हिरोशिमा आए और उन्हें खाना और बंदूकें दी"...इस हमले की दूसरी
चश्मदीद 80 वर्षिये कीको ओगुरा अपनी पूरी जिंदगी उस भयानक दिन को याद करते हुए
गुजार रही है... वो बताती हैं कि "बम धमाके के अचानक बाद काले रंग की चिपचिपी
बारिश शुरू हो गई... इस बारिश ने मेरे पूरे कपड़ों को भिगो दिया...वहां एक लाइन
में जले हुए लोग पड़े थे...अचानक मेरे पैरों पर एक लड़की आकर गिरी और उसने पानी
मांगा... इसके बाद वहां दूसरे लोग भी पानी मांगने लगे...मैं उन लोगों के लिए पानी
लेकर आई लेकिन इसे पीते ही कुछ लोग मर गए...मुझे उनको पानी देने पर आज भी काफी
पछतावा होता है....जापान में जो हुआ था उसके पीछे तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति
हैरी ट्रूमैन का हाथ था..अमरीकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन के एक आदेश ने जापान के
हिरोशिमा शहर को लाशों के शहर में तब्दील कर दिया...पूरा हिरोशिमा शहर शमशान बन
गया...जहां नजर जाती थी वहां लोगों के शवों के सिवाय कुछ नजर नहीं आ रहा था...
कैलेंडर में एक बार फिर तारीख बदली और इस बार वो तारीख थी 9 अगस्त
1945...आठ अगस्त की रात बीत चुकी थी, अमेरिका के बमवर्षक बी-29 सुपरफोर्ट्रेस बॉक्स पर एक बम लादा जा चुका
था...यह बम किसी भीमकाय तरबूज-सा था और इसका वज़न था 4050 किलो..बम का नाम विंस्टन
चर्चिल के सन्दर्भ में 'फैट मैन' रखा
गया...इस दूसरे बम के निशाने पर था औद्योगिक नगर कोकुरा.. यहां जापान की सबसे बड़ी
और सबसे ज्यादा गोला-बारूद बनाने वाली फैक्टरियां थीं...सुबह नौ बजकर पचास मिनट पर
नीचे कोकुरा नगर नजर आने लगा...इस समय बी-29 विमान 31,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा
था.. बम इसी ऊंचाई से गिराया जाना था...लेकिन नगर के ऊपर बादलों का डेरा था...बी-29
फिर से घूम कर कोकुरा पर आ गया...लेकिन जब शहर पर बम गिराने की बारी आई तो फिर से
शहर पर धुंए का कब्जा था...और नीचे से विमान-भेदी तोपें आग उगल रहीं थीं...बी-29
का ईंधन खतरनाक तरीके से घटता जा रहा था...विमान में सिर्फ इतना ही तेल था कि वापस
पहुंच सकें... चालक दल ने बम गिराने वाले स्वचालित उपकरण को चालू कर दिया और कुछ
ही क्षण बाद भीमकाय बम तेजी से धरती की ओर बढ़ने लगा...52 सेकेण्ड तक गिरते रहने
के बाद नागासाकी में बम पृथ्वी तल से 500 फुट की ऊंचाई पर फट गया.. घड़ी में समय
था 11 बजकर 2 मिनट। आग का एक भीमकाय गोला मशरुम की शक्ल में उठा। गोले का आकार
लगातार बढ़ने लगा और तेजी से सारे शहर को निगलने लगा। नागासाकी के समुद्र तट पर
तैरती नौकाओं और बन्दरगाह में खड़ी तमाम नौकाओं में आग लग गई। आसपास के दायरे में
मौजूद कोई भी व्यक्ति यह जान ही नहीं पाया कि आखिर हुआ क्या है क्योंकि वो इसका
आभास होने से पहले ही मर चुके थे.. दो परमाणु हमलों और 8 अगस्त 1945 को सोवियत संघ
द्वारा जापान के विरुद्ध मोर्चा खोल देने पर, जापान के पास
कोई और रास्ता नहीं बचा था। जापान के युद्ध मंत्री और सेना के अधिकारी आत्मसमर्पण
के पक्ष में फिर भी नहीं थे, लेकिन प्रधानमंत्री बारोन
कांतारो सुजुकी ने एक आपातकालीन बैठक बुलाई और इसके छह दिन बाद जापान ने मित्र
राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
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