सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

टीपू सुल्तान

एक ऐसा शासक जो कहलाता था मैसूर का शेर... जिसकी तलवार की धार से कांपते थे अंग्रेज... जिसने बनाया था संसार का पहला रॉकेट... ऐसे महान भारतीय शासक.. जिसकी बहादुरी का लोहा सारा संसार मानता है...  ऐसा शासक जो स्वयं राजा होते हुए भी नागरिक कहलाना पसन्द करता था... हम बात कर रहें हैं मैसूर के शेर के नाम से प्रसिद्ध टीपू सुल्तान की... जिसे आधुनिक राकेट विज्ञान के जनक के रूप में भी जाना जाता है.. एक ऐसा शासक जिसने अंग्रेजों, मराठों और निजामों से लोहा लिया.. वो था नेपोलियन का परम् मित्र.. उसने 15 साल की उम्र में लड़ा था पहला युद्ध... उसके नाम से ही खौफ खाते थे अंग्रेज.... जी हां टीपू सुल्तान ने 17 साल की उम्र में दी थी अंग्रेजों को मात.... 20 साल की उम्र में टीपू सुल्तान ने शेर पर शिकंजा कसते हुए अपने दोस्त की जान बचाई थी... टीपू सुल्तान को भारत का पहला मुस्लिम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी कहा जाता है.... तभी तो उसके नाम से खौफ खाते थे अंग्रेज.... टीपू सुल्तान ने अपने एक मिसाइल से खत्म कर दिया था मैसुर का दूसरा युद्ध... टीपू सुल्तान के लिए कहा जाता है कि वो ऐसा मुस्लिम शासक था जो पहनता था राम नाम की अंगुठी.... टीपू सुल्तान की अंगूठी को युद्ध में हुई मौत के बाद एक अंग्रेज अफसर ने उतार लिया था, जिसे कुछ साल पहले ब्रिटेन में नीलाम किया गया.. इतिहासकारों के मुताबिक टीपू सुल्तान ने एक लाख हिन्दुओं को जबरन मुस्लिम बना दिया था.... अब प्रश्न ये उठता है कि अगर उसने हिंदुओं पर अत्याचार किए तो वह राम नाम अंकित अंगूठी क्यों पहनता था... कहते हैं कि जब अंग्रेज भारत पर कब्जा करने में लगे थे तब दक्षिण भारत में उन्हें रोकने वाला टीपू सुल्तान ही था.. टीपू सुल्तान ने हर वह काम किया जो किसी भी राज्य का राजा अपनी सत्ता को बचाने के लिए करता है.. वैसे तो टीपू सुल्तान को दक्षिण का औरंगजेब भी कहा जाता है.. क्योंकि वक्त पड़ने पर उसने अपने दो बेटों को अंग्रेजों को हाथ गिरवी रख दिया था.. अंग्रेजों से लोहा लेते वक्त उसने एक बार कहा था.. मैं सारी उम्र मेमने की तरह जीने की बजाय एक दिन शेर की तरह जीना पसंद करूंगा...... तभी तो अंग्रेज भी उसके पराक्रम से चकित हो गए थे और उसके साहस के प्रतीक स्वरूप उसकी तलवार अपने साथ ले गए थे..
टीपू सुल्तान का जन्म मैसूर के सुल्तान हैदर अली के घर 20 नवम्बर, 1750 को देवनहल्ली वर्तमान में कर्नाटक का कोलार ज़िला में हुआ था.. टीपू का पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान साहब था.... वक्त बदलता गया और धीरे धीरे सुल्तान फतेह अली खान साहब टीपू सुल्तान बन गया.. अली खान का नाम टीपू सुल्तान आरकोट के औलिया टीपू मस्तान के नाम पर रखा गया.... टीपू के पिता हैदर अली मैसूर के सेनापति थे जो अपनी ताकत के दम पर 1761 में मैसूर के शासक बने थे... टीपू की माता का नाम फ़क़रुन्निसा था.... टीपू सुल्तान ने बचपन में पढ़ाई के साथ साथ सैन्य शिक्षा और राजनीतिक शिक्षा भी ली.. हलांकि टीपू के पिता खुद अनपढ़ थे... टीपू बचपन से ही इतने प्रभावसाली थे की 17 साल के उम्र में उनको महत्वपूर्ण राजनायिक और सैन्य मिशन में स्वतंत्र प्रभार दे दिया गया... टीपू सुल्तान के पिता ने दक्षिण में अपनी शक्ति का विस्तार आरंभ किया था। इस कारण अंग्रेज़ों के साथ-साथ निजाम और मराठे भी उसके शत्रु बन गए थे.. टीपू ने 18 वर्ष की उम्र में अंग्रेज़ों के विरुद्ध पहला युद्ध जीता था.. टीपू सुल्तान बहादुर होने के साथ ही दिमागी सूझबूझ से रणनीति बनाने में भी बेहद माहिर था.. उसने अपने शासनकाल में भारत में बढ़ते ईस्ट इंडिया कंपनी के साम्राज्य के सामने कभी नहीं झुका और अंग्रेज़ों से जमकर लोहा लिया.. मैसूर की दूसरी लड़ाई में अंग्रेज़ों को खदेड़ने में उसने अपने पिता हैदर अली की काफ़ी मदद की.. उसने अपनी बहादुरी से जहां कई बार अंग्रेज़ों को पटखनी दी, वहीं निज़ामों को भी कई मौकों पर धूल चटाई.. टीपू सुल्तान एक गजब का योद्धा होने के साथ योग्य शासक भी था...  उसने पहली बार अंग्रेजी फौज के खिलाफ रॉकेटों का उपयोग किया था.. 1772 और 1799 में श्रीरंगपट्टनम में दो लड़ाइयां हुईं.. इनमें टीपू के सिपाहियों ने 6 से लेकर 12 पौंड तक के रॉकेट फिरंगियों पर फेंके.. ये रॉकेट लोहे की नली के बने थे.. उन रॉकेटों की मारक क्षमता एक से डेढ़ मील तक होती थी.. ये रॉकेट ठीक निशाने पर तो नहीं लगते थे, लेकिन वे बड़ी संख्या में छोड़े जाते थे..  जिससे अंग्रेजों की फौज परेशान हो जाते थे..
18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में टिपू एक ऐसा महान शासक था जिसने अंग्रेजों को भारत से निकालने का प्रयत्न किया... अपने पिता हैदर अली के निधन के बाद 1782 में टीपू सुल्तान मैसूर की गद्दी पर बैठा.. टीपू प्रजा की तकलीफों का काफी ध्यान रखता था.. तभी उसके शासन काल में किसान प्रसन्न थे...  इसमें कोई दो राय नहीं की टीपू सुल्तान एक विद्वान, कुशल़ और योग्य सेनापति था.. टीपू को उनके दादाजी फ़तेह मुहम्मद के नाम पर फ़तेह अली भी कहा जाता था.. 17 वर्ष की उम्र में उनको महत्वपूर्ण राजनयिक और सैन्य मिशन में स्वतंत्र प्रभार दे दिया गया.. वो युद्ध में अपने पिता का दायां हाथ था, जिसकी सहायता से हैदर अली दक्षिणी भारत का एक शक्तिशाली शासक बना.. 17 वर्ष की उम्र में ही टीपू ने अंग्रेजों के खिलाफ पहला युद्ध लड़ा और अंग्रेजों को धुल चटाई.. 20 साल की उम्र में टीपू अपने फ्रेंच दोस्त के साथ शिकार करने गया जहां उसके दोस्त पर एक शेर ने हमला कर दिया जिसको टीपू ने बिना हथियार के ही मार दिया तबसे इन्हें टाइगर आफ मैसूर के नाम से जाना जाने लगा.. शेर इनकी हुकुमत का प्रतीक भी था.. टीपू सुल्तान ने दक्षिण के सभी छोटे राज्यों को जीत लिया..  उन्होंने दक्षिण के निजामों और अंग्रेजों से हारे भारतीय शासकों को भी हराया..  टीपू एक सूफी संत बनना चाहता था लेकिन उसके पिता ने उसे योद्धा बनने के लिए बाध्य किया.. 'टाइगर ऑफ मैसूर' कहे जाने वाले टीपू सुल्तान का प्रतीक चिन्ह बाघ था जो उनसे जुड़ी चीजों पर प्रमुख रूप से अंकित मिलता है.. टीपू द्वारा कई युद्धों में हारने के बाद मराठों एवं निजाम ने अंग्रेजों से संधि कर ली थी. ऐसी स्थिति में टीपू ने भी अंग्रेजों से संधि का प्रस्ताव दिया. वैसे अंग्रेजों को भी टीपू की शक्ति का अहसास हो चुका था इसलिए छिपे मन से वे भी संधि चाहते थे. दोनों पक्षों में वार्ता मार्च, 1784 में हुई और इसी के फलस्वरूप 'मंगलौर की संधि' सम्पन्न हुई... टीपू सुल्तान को दुनिया का पहला मिसाइल मैन माना जाता है. बीबीसी की एक खबर के मुताबिक, लंदन के मशहूर साइंस म्यूजियम में टीपू सुल्तान के रॉकेट रखे हुए हैं. इन रॉकेटों को 18वीं सदी के अंत में अंग्रेज अपने साथ लेते गए थे.
टीपू सुल्तान एंटी हिंदू था या नहीं ये तो बहस की बात है लेकिन इतिहास में दर्ज टीपू सुल्तान से जुड़ी कुछ ऐसी बातें हैं जो उसे इतिहास हीरो मानता है... 19वीं सदी में ब्रिटिश गवर्मेंट के अधिकारी और लेखक विलियम लोगान ने अपनी किताब 'मालाबार मैनुअल' में लिखा है कि टीपू सुल्तान ने अपने 30,000 सैनिकों के दल के साथ कालीकट में तबाही मचाई थी.. किताब में विलियम ने यह भी लिखा हैं कि शहर के मंदिर और चर्चों को तोड़ने के आदेश दिए गए. यहीं नहीं, हिंदू और इसाई महिलाओं की शादी जबरन मुस्लिम युवकों से कराई गई. पुरुषों से मुस्लिम धर्म अपनाने को कहा गया और जिसने भी इससे इंकार किया उसे मार डालने का आदेश दिया गया... श्रृंगेरी शंकराचार्य के मंदिर और मठ शंकराचार्य को लिखी एक चिट्ठी में मठ पर हुए हमले पर टीपू सुल्तान ने आक्रोश और दु:ख व्यक्त किया था.. इसके बाद टीपू ने बेदनुर के आसफ़ को आदेश दिया कि शंकराचार्य को 200 फ़नम नक़द धन और अन्य उपहार दिये जाएं.. श्रृंगेरी मंदिर में टीपू सुल्तान की दिलचस्पी काफ़ी सालों तक जारी रही, और 1790 के दशक में भी वे शंकराचार्य को खत लिखते रहे... यह भी सही है कि लाखों हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कराने वाला टीपू सुल्तान ने कई मन्दिरों को भी तोहफ़े पेश किए थे..  मेलकोट के मन्दिर में सोने और चांदी के बर्तन है, जिनके शिलालेख बताते हैं कि ये टीपू सुल्तान ने भेंट किए थे.. टीपू सुल्तान ने कलाले के लक्ष्मीकान्त मन्दिर को चार रजत कप भेंटस्वरूप दिए थे.. 1782 से 1799 के बीच, टीपू सुल्तान ने अपनी जागीर के मन्दिरों को 34 दान के सनद जारी किया था... ननजनगुड के श्रीकान्तेश्वर मन्दिर में टीपू का दिया हुआ एक रत्न-जड़ित कप है.. ननजुनदेश्वर मन्दिर को टीपू सुल्चान ने एक हरा-सा शिवलिंग भेंट किया था.. श्रीरंगपटना के रंगनाथ मन्दिर को टीपू ने सात चांदी के कप और एक रजत कपूर-ज्वालिक भेंट में दिया था.. कुछ लोगों का दावा है कि ये दान हिंदू शासकों के साथ गठबंधन बनाने का एक तरीका था।

टीपू सुल्तान एक बादशाह बन कर पूरे देश पर राज करना चाहता था लेकिन उसकी ये इच्छा पूरी नही हुई.. टीपू सुल्तान ने 1782 में अपने पिता के निधन के बाद मैसूर की कमान संभाला और अपने अल्प समय के शासनकाल में ही विकास कार्यों की झड़ी लगा दी थी.. उसने जल भंडारण के लिए कावेरी नदी पर बांध बंधवाया था जो आज कृष्णराज सागर बांध के नाम से जाना जाता है.. टीपू निःसन्देह एक कुशल प्रशासक एवं योग्य सेनापति था.. उसने 'आधुनिक कैलेण्डर' की शुरुआत की और सिक्का ढुलाई और नाप-तोप की नई प्रणाली का प्रयोग किया.. सन् 1799 में अंग्रेजों के खिलाफ चौथे युद्ध में मैसूर की रक्षा करते हुए टीपू सुल्तान की मौत हो गई..  12 बच्चों में से टीपू सुल्तान के सिर्फ़ दो बच्चों के बारे में पता चल पाया है, जबकि 10 बच्चों की जानकारी आज भी किसी के पास नहीं हैं.. टीपू सुल्तान की तलवार का वजन 7 किलो 400 ग्राम है और उस पर रत्नजड़ित बाघ बना हुआ है.. बताया जाता हैं कि टीपू की मौत के बाद ये तलवार उसके शव के पास पड़ी मिली थी.. टीपू का सबसे बड़ा अवगुण यह था कि वह जिद्दी और घमंडी व्यक्ति था.. यही दुर्गुण उसके पराजय का कारण बना... वह फ्रांसिसीयों पर बहुत अधिक भरोसा करता था और देशी राजाओं कि शक्तियों को तुक्ष्य समझता था.. वह अपने पिता के समान ही निरंकुश और स्वंत्रताचारी था.. उसके चरित्र के सम्बंध में विद्वानों में काफी मतभेद है.. अलग अलग अंग्रेज विद्वानों ने उसकी आलोचना करते हुए उसे अत्याचारी और कट्टर बताया है.. कुछ ऐसे भी इतिहासकार है जिन्होंने टीपू के चरित्र की काफी प्रशंसा की है.. कुछ इतिहाकारों ने टीपू को एक परिश्रमी शासक, मौलिक सुधारक और महान योद्धा बताया है... उन दिनों में मैसूर को लेकर एक कहावत मशहूर हुआ करती थी कि टीपू के पिता हैदर अली साम्राज्य स्थापित करने के लिए पैदा हुआ था और टीपू उसे खोने के लिए.. इन सारी बातों के बावजूद वह अपने पिता के समान कुटनीतिज्ञ एवं दूरदर्शी नहीं था यह उसका सबसे बड़ा अवगुण था.. इससे भी बड़ी अवगुण उसकी पराजय थी... अगर उसकी विजय होती तो उसके चरित्र की प्रशंसा कि जाती..

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