सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

पशुपतिनाथ

नेपाल की राजधानी है काठमांडू... और काठमांडू में बाबा भोले नाथ पशुपतिनाथ के नाम से विराजमान है... भगवान शिव का यह नगरी विश्व के प्रचीन नगरी में से एक माना जाता है... यह नगर इसलिए भी प्रसिद्ध है क्योंकि यहां शिव साक्षात विराजमान हैं... भगवान आशुतोष का यह मंदिर विशेष मंदिरों में से एक माना जाता है.... यह मंदिर बागमती नदी के तट पर देवपाटन इलाके में स्थित है.... सदियों से इस मंदिर में भगवान शिव का दर्शन करने के लिए भारत के अलवा पूरी दुनिया से लोग यहां आते हैं....  बाबा भोले नाथ की इस मंदिर से कई अनोखी बातें और रहस्य जुड़े हुए हैं.., जो इसके आकर्षण और महत्व को कई गुना बढ़ा देते हैं... माना जाता है कि भारत में स्थित भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों के अतिरिक्त कुछ ज्योतिर्लिंग बाहर भी हैं, जिसमें पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग एक है. कहते हैं, इस ज्योतिर्लिंग का सम्बन्ध भूगर्भ के माध्यम से उत्तराखंड स्थित केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के साथ जुड़ा हुआ है.... हिन्दू धर्म में यह मंदिर भगवान शिव के आठ सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है... पशुपतिनाथ मंदिर के बारे में प्रचलित मान्यता है कि जो व्यक्ति भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन करता है, उसका जन्म फिर कभी पशु योनि में नहीं होता है... लेकिन यहां की एक मान्यता यह भी है.. कि इस मंदिर में दर्शन के लिए जाते समय श्रद्धालुओं को पहले मंदिर के बाहर स्थित इस नंदी का दर्शन नहीं करना चाहिए... कहते हैं, जो व्यक्ति भगवान शिव से पहले इस नंदी का दर्शन करता है और फिर बाद में भगवान शिव का दर्शन करता है, तो उसे अगले जन्म पशु योनि मिलती है... इसलिए इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन से पहले नंदी का दर्शन करने से मना किया जाता है.... पशुपतिनाथ मंदिर के बाहर आर्य नामक यह एक घाट है. कहा जाता है सिर्फ इस पवित्र घाट का पानी ही मंदिर में ले जाया जाता है... इस घाट के जल के अलावा अन्य किसी जल को मंदिर में लेकर जाने की अनुमति नही है... अपने स्वरुप में पशुपतिनाथ ज्योर्लिंग चारमुखी है... इस ज्योतिर्लिंग के बारे में एक और जनश्रुति यह भी है कि इसमें पारस पत्थर के गुण समाहित हैं.. अर्थात यहां लोहे को सोना में बदला जा सकता है...  इस मंदिर से कई अनोखी बातें और रहस्य जुड़े हुए हैं, जो इसके आकर्षण और महत्व को कई गुना बढ़ा देते हैं...
यह है पशुपतिनाथ का विशाल मंदिर.. इसी मंदिर में विराजमान हैं देवों के देव महादेव.. काठमांडू सहित पूरे नेपाल में भूकंप से सबकुछ तबाह हो चुका था... हजार से ज्यादा मौतें तो सिर्फ काठमांडू में हुई थी... शहर की सारी बुलंद इमारते जमीनदोज हो गईं लेकिन भगवान शिव का यह पशुपतिनाथ मंदिर वैसे हीं खड़ा रहा जैसे ये शिवालय सदियों से यहां अवस्थित है... साल 2015 में काठमांडू में आये भारी भूकंप के बाद भी पशुपतिनाथ मंदिर में खरोंच तक नहीं आया.. यहां तक की आसपास के मंदिरों के गुंबद और दीवारें गिर गई लेकिन पशुपतिनाथ मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ... जब एक तरफ नेपाल में धरती के भीतर से उठी तबाही की तरंगों ने सब कुछ मिटा दिया था,.. पशुपतिनाथ के इस धाम में तब भी गूंज रही थीं इस आफत से राहत की प्रार्थनाएं... त्रासदी के दौरान नेपाल की जमीन पर यही एक ऐसी निशानी है जो तबाही के बीच अब भी सिर उठाए खड़ी है... इस विनाशकारी भूकंप से आधा नेपाल तबाह हो गया है, लेकिन भोले बाबा का मंदिर आज भी वैसा ही है जैसे भूकंप से पहले था.. कहा जाता है की कोई चमत्कार ने मंदिर की रक्षा किया होगा,... नेपाल की पवित्र बागमती नदी के किनारे फैला हुआ है इसका परिसर... पशुपतिनाथ मंदिर का मुख्य ढांचा जो आम मंदिरों से अलग नजर आता है... सोने से सजा शिखर और चांदी के दरवाजे... सीढ़ीनुमा चबूतरा और साथ बहती बागमती नदी... सब कुछ जस का तस था.. श्रद्धालु मानते हैं कि यह शिव का चमत्कार है जिससे भूकंप इस मंदिर को नुकसान नहीं पहुंचा सका... इस परिसर में आसपास के मंदिरों को तो नुकसान पहुंचा लेकिन पशुपतिनाथ मंदिर का मुख्य ढांचा पूरी तरह सुरक्षित बच गया... 7.9 तीव्रता के भूकंप में काठमांडू के कई एतिहासिक और महत्वपूर्ण इमारतें जमीदोंज हो गई लेकिन पांचवीं सदी के सुप्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा.. विनाशकारी भूकंप ने नेपाल को तबाह कर दिया लेकिन कुदरत के विनाशकारी कहर में भी देवों के देव महादेव के मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ.. भूकंप के तेज झटकों से आसपास की इमारतें जमींदोज हो गईं, लेकिन पशुपतिनाथ मंदिर जैसे का तैसे खड़ा है... जिस वक्त तबाही ने ताडंव मचा रहा था.. ठीक उसी वक्त पशुपतिनाथ मंदिर में न जाने कितने भक्त मौजूद थे.. भक्तों का कहना है जलजले से धरती कांपने लगी, लेकिन भोले भंडारी ने अपने भक्तों को नई जिंदगी दे दी... यह कोई पहला मौका नहीं है जब भूकंप से नेपाल में इस तरह की तबाही हुई है, इससे पहले साल 1934 में भी नेपाल में 8.3 की तीव्रता से भूकंप आया था। लगभग 80 साल पहले आए इस भूकंप ने भी नेपाल में खूब तबाही मचाई थी.. कई ऐतिहासिक स्मारक मिट्टी के मलबे में तबदील हो गए थे, लेकिन 1934 में भी पशुपतिनाथ मंदिर को कोई आंच नहीं आई थी... धर्मशास्त्र से जुड़े जानकार मानते है जिस तरह से भारत के उत्तराखंड में आए भयानक सैलाब के बाद केदारनाथ मंदिर को कोई नुकसान नही पहुंचा था, ठीक उसी तरह आधा नेपाल तबाह होने के बाद भी भोले बाबा का पशुपतिनाथ मंदिर पूरी तरह से सुरक्षित है। 
नेपाल में भयानक तस्वीरों के बीच एक चमत्कार का जिक्र हो रहा है. चमत्कार ये कि नेपाल में भूकंप के जिन भयानक झटकों ने 80 फीसदी मंदिरों को तबाह कर दिया उन्हीं झटकों के बीच पशुपतिनाथ का मंदिर पूरी तरह सुरक्षित बच गया. लेकिन ये हुआ क्यों? क्या वाकई चमत्कार हुआ या फिर इसका कोई वैज्ञानिक आधार है ? 
काठमांडु के पशुपतिनाथ मंदिर का शिंवलिग सारे शिंवलिग में सबसे अनोखा माना जाता है  यह भगवान शिव का मंदिर है। इसमें रखा शिवलिंग सबसे अनोखा है। नेपाल राजधानी काठमांडु से 6 किलोमीटर पशुपतिनाथ मंदिर एक बहुत ही विहंगम और विश्वप्रसिद्ध मंदिर है जिसें शिव पुराण के अनुसार एक ज्योतिर्लिग के रूप में निरूपित किया गया है। इस मंदिर के गर्भगृह में चारमुखी 6 फीट ऊंचा विशाल और अनोखा शिवलिंग है।इस शिवलिंग की अनोखी बात ये है कि इसमे बने सभी मुख अपने आप में कुछ न कुछ महत्व लिए हुए हैं और इतना ही नहीं बल्कि इनके नाम भी अलग अलग हैं। इस शिवलिंग पर पूर्व दिशा की ओर बने मुख को "तत्पुरूषा" और दक्षिण को "अघोरा", उत्तर को "वामदेव" तथा पश्चिम दिशा वाले मुख को "साध्योजटा" के नाम से जाना जाता है।पशुपतिनाथ मंदिर स्थित इस शिवलिंग के इन मुखों को चार धर्मो और हिन्दू धर्म के चार वेदों के चिन्हों के रूप में वर्णित किया जाता है। इसके ऊपर के भाग को ईशान कहा जाता है। इस मंदिर में महाशिव रात्रि पर विशेष पूजा-अर्चना होती है जिसमें दुनियाभर के सभी देशों से हिंदू धर्म को मानने वाले लोग यहां आते हैं।
नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर को कुछ मायनों में तमाम मंदिरों में सबसे प्रमुख माना जाता है। पशुपतिका अर्थ है पशु मतलब जीवनऔर पतिमतलब स्वामी या मालिक, यानी जीवन का मालिकया जीवन का देवता। पशुपतिनाथ दरअसल चार चेहरों वाला लिंग हैं। पूर्व दिशा की ओर वाले मुख को तत्पुरुष और पश्चिम की ओर वाले मुख को सद्ज्योत कहते हैं। उत्तर दिशा की ओर देख रहा मुख वामवेद है, तो दक्षिण दिशा वाले मुख को अघोरा कहते हैं।नेपाल अध्यात्म की भूमि है और एक समय में यह जगह पूरी तरह से जिंदगी के आध्यात्मिक पहलुओं से जुड़ी हुई थी। ये चारों चेहरे तंत्र-विद्या के चार बुनियादी सिद्धांत हैं। कुछ लोग ये भी मानते हैं कि चारों वेदों के बुनियादी सिद्धांत भी यहीं से निकले हैं। माना जाता है कि यह लिंग, वेद लिखे जाने से पहले ही स्थापित हो गया था और इससे कई पौराणिक कहानियां भी जुड़ी हुई हैं। इनमें से एक कहानी इस तरह है- कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बाद अपने ही बंधुओं की हत्या करने की वजह से पांडव बेहद दुखी थे। उन्होंने अपने भाइयों और सगे संबंधियों को मारा था। इसे गोत्र वध कहते हैं। उनको अपनी करनी का पछतावा था और वे खुद को अपराधी महसूस कर रहे थे। खुद को इस दोष से मुक्त कराने के लिए वे शिव की खोज में निकल पड़े। लेकिन शिव नहीं चाहते थे कि जघन्य कांड कुरुक्षेत्र की लड़ाई जो उन्होंने किया है, उससे उनको इतनी आसानी से मुक्ति दे दी जाए। इसलिए पांडवों को अपने पास देखकर उन्होंने एक बैल का रूप धारण कर लिया और वहां से भागने की कोशिश करने लगे। उनका पीछा करके उनको पकड़ने की कोशिश में लग गए। इस भागा दौड़ी के दौरान शिव जमीन में लुप्त हो गए और जब वह पुन: अवतरित हुए, तो उनके शरीर के टुकड़े अलग-अलग जगहों पर बिखर गए। नेपाल के पशुपतिनाथ में उनका मस्तक गिरा था और तभी इस मंदिर को तमाम मंदिरों में सबसे खास माना जाता है। केदारनाथ में बैल का कूबड़ गिरा था। बैल के आगे की दो टांगें तुंगनाथ में गिरीं। यह जगह केदार के रास्ते में पड़ता है। बैल का नाभि वाला हिस्सा हिमालय के भारतीय इलाके में गिरा। इस जगह को मध्य-महेश्वर कहा जाता है। यह एक बहुत ही शक्तिशाली मणिपूरक लिंग है। बैल के सींग जहां गिरे, उस जगह को कल्पनाथ कहते हैं। इस तरह उनके शरीर के अलग-अलग टुकड़े अलग-अलग जगहों पर मिले ।उनके शरीर के टुकड़ों के इस तरह बिखरने का वर्णन कहीं न कहीं सात चक्रों से जुड़ा हुआ है। इन मंदिरों को इंसानी शरीर की तरह बनाया गया था। यह एक महान प्रयोग था- इसमें तांत्रिक संभावनाओं से भरपूर इंसान का एक बड़ा शरीर बनाने की कोशिश की गई थी। पशुपतिनाथ दो शरीरों का सिर है। एक शरीर दक्षिणी दिशा में हिमालय के भारतीय हिस्से की ओर है, दूसरा हिस्सा पश्चिमी दिशा की ओर है, जहां पूरे नेपाल को ही एक शरीर का ढांचा देने की कोशिश की गई थी। नेपाल को पांच चक्रों में बनाया गया था।
नेपाल में भगवान शिव का पशुपतिनाथ मंदिर विश्वभर में विख्यात है। इसका असाधारण महत्त्व भारत के अमरनाथ व केदारनाथ से किसी भी प्रकार कम नहीं है। पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव के पशुपति स्वरूप को समर्पित है। यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल भगवान पशुपतिनाथ का मंदिर नेपाल में शिव का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के आठ सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। नेपाल में यह भगवान शिव का सबसे पवित्र मंदिर है। इस अंतर्राष्ट्रीय तीर्थ के दर्शन के लिए भारत के ही नहीं, अपितु विदेशों के भी असंख्य यात्री और पर्यटक काठमांडू पहुंचते हैं। पशुपतिनाथ मंदिर को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के मुताबिक मंदिर का रिश्ता नित्यानंद नाम के एक ब्राह्मण से है। कहते हैं नित्यानंद की गाय रोज एक ऊंचे टीले पर जाकर स्वयं दूध बहा देती थी। नित्यानंद को भगवान ने सपने में दर्शन दिया। इसके बाद जब उस स्थान की खुदाई की गई तो भव्य लिंग प्राप्त हुआ। एक और कहानी के मुताबिक भगवान आशुतोष सुंदर तपोभूमि से आकर्षित होकर एक बार कैलाश छोड़ कर यहीं आकर रम गए। यहां वो 3 सींग वाले मृग बनकर विचरण करने लगे। इसी वजह से इस इलाके को पशुपति क्षेत्र या मृगस्थली कहते हैं। शिव को गायब देख कर ब्रह्मा और विष्णु को चिंता हुई। खोज करने पर इस इलाके में उनका ध्यान 3 सींग वाले मृग पर गया। ब्रह्मा ने पहचान कर मृग का सींग पकड़ने की कोशिश की, जिससे सींग के 3 टुकड़े हो गए। एक टुकड़ा जहां गिरा शिव की इच्छा से विष्णु ने वहीं शिवलिंग स्थापित किया, जो पशुपतिनाथ के रूप में विख्यात हुआ।कुछ लोग इस मंदिर को पहली शताब्दी का मानते हैं तो इतिहासकार इसे तीसरी शताब्दी का बताते हैं। जो भी हो, मंदिर बहुत प्राचीन है। पशुपतिनाथ का शिवलिंग काले रंग का पत्थर है। कुछ खास धातुओं से बना होने की वजह से इसकी चमक बेमिसाल है। नेपालवासी तो यहां तक मानते हैं कि इस लिंग में पारस पत्थर का गुण है। पशुपतिनाथ नेपाल शासकों के अधिष्ठाता देव माने जाते हैं। इसमें सबसे पहले राजा और राजवंश के सदस्यों को ही पूजा का अधिकार था। इस मंदिर में केवल हिंदू ही प्रवेश कर सकते हैं। मुख्य द्वार पर नेपाल सरकार का संगीनधारी पहरेदार हर समय रहता है। मंदिर में चमड़े की वस्तुएं ले जाना और फोटो खींचना मना है।बागमती के पवित्र जल से भगवान पशुपति का अभिषेक किया जाता है। इस मंदिर की इतनी मान्यता है कि मोक्ष के लिए बागमती के दाहिनी तट पर गर्भ गृह के सामने ही शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है।


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