एक ऐसी सभ्यता जिसका अस्तित्व आज से
लगभग 4600 साल पहले था...जहां हजारों साल पहले
ही मानव सभ्यता एक बड़े ही अद्भुत तरीके से विकास कर रही थी... एक ऐसी सभ्यता जिसे
विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक माना जाता है...एक ऐसी सभ्यता जिसके बारे
में हम बहुत कम जानते हैं....लेकिन जितना भी जानते हैं वो बहुत ही आश्चर्यजनक
है...जी हां हम बात कर रहे हैं हडप्पा सभ्यता की...और इसी हडप्पा सभ्यता का एक शहर
था मोहनजोदडो... जिसे मौत के टिले के नाम से भी जाना जाता है...जो जिंदगी हम आज जी
रहे हैं लगभग 4600 साल पहले मोहनजोदडो के लोग जिया करते थे.... जब सारी दुनिया के
लोग खाने की तलाश में लगे थे...उस समय मोहनजोदड़ो के लोग तकनीक में इतने अग्रणी
थे....कि वे बडे-बडे और सुव्यवस्थित शहर बनाने में महारत हासिल कर चुके थे...जिसका
ढांचा हुबहु आज के शहरों जैसा था... मोहनजोदडो के लोग पक्की इंटों से बने घरों में
रहा करते थे....जिन घरों में स्विमंग पुल भी हुआ करते थे...जो आज मिट्टी में दफन
हो चुके हैं...लेकिन खुदाई में मिले अवशेष और कलाकृतियों से यहां की उत्कृष्ट और
आधुनिक तकनीक का अंदाजा लगाया जा सकता है..... मोहनजोदडो को भारत का सबसे पुराना
लैंडस्केप भी कहा जाता है.... मोहनजोदड़ो का सिन्धी भाषा में अर्थ है मुर्दों का
टीला... इसे दुनिया का सबसे पुराना नियोजित और उत्कृष्ट शहर माना जाता है... यह
सिंघु घाटी सभ्यता का सबसे परिपक्व शहर भी था...इस नगर के अवशेष पाकिस्तान के
सक्खर ज़िले में सिन्धु नदी के तट पर स्थित है... इसकी खोज राखलदास बनर्जी ने 1922
ई. में की थी... इस शहर को देख कर ऐसा लगता है कि ये शहर किसी सफल सिविल इंजीनियर
ने बनाया है... ये शहर पत्थरों की जगह बहुत ही मजबूत और पुरानी इंटों से बना
था...जो बिल्कुल आज प्रयोग की जाने वाली ईटो जैसी हैं…. ये सभी ईटे एक ही आकार और बजन की थीं, मानो इन्हें एक ही सरकार के द्वारा
बनवाया गया हो... खुदाई में यहां 3 मंजिले मकान भी मिले हैं जिनमें बाथरुम और पानी
निकास की नालियां भी बनी हुई थीं... यहां के लोग खेती और पशुपालन में भी पारंगत
थे... इन्हें गणित का भी ज्ञान था... शोधकर्ताओं को खुदाई के दौरान कंघी, म्यूजिक
इंस्ट्रुमेंट, और खिलौने भी मिले हैं....खुदाई के दौरान यहां मिले कंकालों में
नकली दांत भी पाए गए हैं...मतलब इस प्राचीन सभ्यता में डॉक्टर भी हुआ करते थे... मोहमजोदड़ो
की सड़कों और गलियों में आप आज भी घूम सकते हैं...यह शहर जहाँ था आज भी वहीं है....यहाँ
की दीवारें आज भी मजबूत हैं,... मोहनजोदड़ो के देव
मार्ग वाले गली में करीब 40फुट लम्बा, 25 फुट चौड़ा और 6फुट गहरा प्रसिद्ध जल
कुंड मिला है जो कि वाटरप्रुफ ईटों से बना है....
सिन्धु घाटी की
सभ्यता को दुनिया की सबसे रहस्यमयी सभ्यता माना जाता है... मोहनजोदड़ो के पुरातात्विक
महत्व को देखते हुए यूनेस्को ने भी इसे विश्व धरोहर की सूची में रखा है.. इतिहासकारों के मुताबिक मोहनजोदड़ो के लोग
रबी की फसल की खेती किया करते थे...और इन्हे अनाज भन्डारण का भी ज्ञान था... मोहनजोदड़ो की खुदाई मे कपड़ों की रंगाई का
एक कारखाना भी पाया गया है.... मोहनजोदड़ो के लोग पत्थरों के आभूषण पहनना
बहुत पसंद करते थे... ये आभूषण बहुत ही कीमती पत्थरों से तैयार किये जाते थे... आज भी कराची, लाहौर,
दिल्ली और लंदन में मोहनजोदड़ो के संग्रह की गयी वस्तुओं का संग्राहलय है.. इस संग्रह में काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें,
वाद्ययंत्र, चाक पर बने विशाल मृद्-भांड, उन पर काले-भूरे चित्र, चौपड़ की गोटियाँ,
दीये, माप-तौल पत्थर,
ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी
और दूसरे खिलौने, दो पाटन वाली चक्की, कंघी,
मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे पत्थरों
के मनकों वाले हार और पत्थर के औज़ार हैं... कहा जाता है की ये लोग सोने चांदी के गहने
भी पहनते थे... यहां के लोग आपस में
पत्थर, धातु का व्यापार करते थे... मोहनजोदड़ो से मिली
कई बहुमूल्य चीज़ों में से सबसे खास है, 10 सेंटीमीटर ऊंची
एक लड़की की कांसे की मूर्ति... बनी-संवरी,
कमर पर हाथ रखी लड़की की यह मूर्ति सिर्फ मोहनजोदड़ो के लोगों के धातुकर्म को
ही नहीं दर्शाती है...बल्कि उस वक़्त के कला,
समाज और साथ ही साथ महिलाओं का भी प्रतिनिधित्व करती है... उत्खनन से ज्ञात होता है
कि इस सभ्यता कि विस्तार बलुचिस्तान, सिन्ध, हरियाणा, गुजरात,
पंजाब, राजस्थान, पश्चिमी उत्तरप्रदेश के
विस्तृत क्षेत्र में था... इन सभी क्षेत्रों में स्थिति केन्द्रों की खुदाई से
समान सभ्यता के अवशेष मिलते रहे हैं.. इस सभ्यता में प्रकृति से चलकर देवत्व तक की
यात्रा धर्म ने तय की थी.. एक ओर हम वृक्ष पूजा देखते हैं तो दूसरी ओर पशुपति शिव
की मूर्ति तथा व्यापक देवी पूजा भी देखने को मिलता है.. यहाँ देवता और दानव दोनों
ही उपासक थे.. देव मूर्तियों के अतिरिक्त अनेक दानवीय स्वरूपों का यहां के मुहरों
पर आरेखन इस बात का परिचायक है... यहां से प्राप्त धड़ विहीन ध्यानावसित संन्यासी
की आकृति एक ओर आध्यात्मिक चेतना को उजागर करती है तो दूसरी ओर देवी के सम्मुख
पशुबलि के लिए बंधे बकरे की आकृति कर्मकाण्ड की गहनतम भावना का घोतक है... सूर्य
की तरह गोल रेखा वाली उभरती आकृति, स्वस्तिक इस तथ्य के पोषक हैं कि यहां पर वैष्णव धर्म के प्रतीक यहां विद्यमान
थे.. धार्मिक मान्यता और विश्वासों का यह युग था... अन्य कुछ मोहरों पर मानव
देवताओं के साथ साथ नृत्य संगीत तथा धार्मिक उत्सवों को मना रहे हैं.. इस सभ्याता
के लोगों में मंत्र-तंत्र में भी विश्वास रहा होगा.. यहां से प्राप्त टिकटों पर
कुछ लिखा हुआ है जिसे देखकर लगता है ये जादुई मंत्र होंगे.. खुदाई के दौरान कुछ
ऐसे मोहरे भी मिले हैं जिन पर विचित्र प्रकार के चिन्ह बने हैं.. ये तांत्रिक
चिन्हों की तरह हैं जिस प्रकार का प्रयोग आज तंत्र में होता है।
सिन्धु घाटी की
सभ्यता को दुनिया की सबसे रहस्यमयी सभ्यता माना जाता है... मोहनजोदड़ो की खुदाई
में असंख्य देवियों की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं...ये मूर्तियां मातृदेवी या प्रकृति
देवी की हैं... प्राचीनकाल से ही मातृ या प्रकृति की पूजा भारतीय करते आए हैं..
यहां पुरोहित की एक
मूर्ति, बैल,
नंदी, मातृदेवी,
बैलगाड़ी और शिवलिंग भी मिले है... जिन्हें हिन्दू धर्म से जोड़ा जा सकता है...जो
लगभग 5000 पुराना है... यहां हुई खुदाई से पता चलता है कि हिन्दू धर्म की
प्राचीनकाल में स्थिति कैसी थी... मोहनजोदड़ो में खुदाई पर बहुत ही बड़ा और
सुन्दर बुद्ध स्तूप भी मिला है... सिंधु घाटी की मूर्तियों
में बैल की आकृतियां विशेष रूप से मिलती हैं.. सिंधु घाटी से प्राप्त बैल की आकृति
सूचक है कि उस समय जैनधर्म का बीजारोपण हो चुका होगा.. यहाँ से मिले एक मुहर पर योग मुद्रा में ध्यान की स्थिति में बैठे शिव की
आकृति का भी अंकन है.. बड़े तथा छोटे शिव लिंग यहाँ बहुत से मिले हैं.. कुछ के ऊपर
छेद हैं जैसे ये धागा में पिरोकर गले में पहनने के काम आते होंगे.. शिव की पूजा
विभिन्न समुदायों द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार से करने का अनुमान लगाया जा सकता है..
इन विविध प्रकार की शिव मूर्तियों की प्राप्ति के आधर पर अनुमान किया जा सकता है
कि प्राचीन भारत में शिवपूजा का श्रीगणेश हड़प्पा निवासियों के समय से ही माना
जाता सकता है.. यह मान्यता है कि मनुष्यों के योगसाधना अनादिकाल से चली आ रही है..
योग कि विधि का भी बहुत कुछ ज्ञान यहां से प्राप्त विभिन्न योग मुद्राओं की
मूर्तियों से परिलक्षित होता है.. भूत-प्रेतों के प्रति लोगों का विश्वास सिंधु
सभ्यता के समय से ही उभर चुका था और सम्भव है कि उस समय शंकर ही उनके स्वामी रहे
हों.. उन दिनों में शुभ-अशुभ प्रभावों की मान्यताएं थीं.. इनसे बचने के लिए
योनिपूजा भी सिन्धु सभ्यता में प्रचिलित थी.. कुछ विशिष्ट बीमारियों का संकेत यहां
से उपचारात्मक सामग्रियों के प्राप्ति से होती है.. सिंधुघाटी से देवी की उपासना
के भी चिन्ह प्राप्त होते हैं.. सिन्धु सभ्यता में एक मुहर पर अंकित एक स्त्री की
नाभि से निकला हुआ कमलनाल दिखाया गया है.. अनेक प्रकार के आभूषणों तथा केशविन्यास
से सज्जित देवियों को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि विविध देवियों की
मान्यता यहां रही होगी.. पौराणिक काल से पीपल,
नीम, आंवला आदि वृक्षों की पूजा समाज में की जाती है तथा इससे सम्बन्धित अनेक
त्योहारों की मान्यता भी दी गई है.. सिंधु घाटी की सभ्यता में भी वृक्ष पूजा का
चलन था तभी वहां से प्राप्त मोहरों पर अनेक वृक्षों की आकृतियाँ अंकित हैं.. वहां
कि मुहरों पर अनेक प्रकार के पशुओं का अंकन मिला है.. माना जाता है कि इस युग में
पहले पशुओं के रूप में देवताओं को स्वीकार किया जाता था.. बैल की पूजा विशेष रूप
से यहां होती होगी क्योंकि इसके विविध प्रकारों का अंकन यहां के मुहरों पर
बहुतायाद से दिखता है.. लगता है शिव के साथ बैल का सम्बन्ध इसी सभ्यता से शुरू हुआ
था क्योंकि यहां इन दोनों की साथ आकृतियाँ मुहरों पर बहुलता से अंकित मिलती हैं..
भारतीय इतिहास के प्राचीनतम वैभव की परिकल्पना को तब जोरदार बल मिला जब 1921
में दयाराम साहनी द्वारा हड़प्पा की खुदाई की गई.. 2500 ई. पू.. के लगभग भारत के
उत्तरी पश्चिमी भाग से एक ऐसी विकसित सभ्यता का ज्ञान सन 1921 में लोगों मिला
जिसमें... तत्कालीन विश्व की प्राचीनतम
अन्य सभ्यताएं अपने विकास के क्रम में बहुत पीछे छूट जाती है.. पश्चिमी विश्व जब
जंगली सभ्यता के आंचल में ढका हुआ था तो एशिया महाद्वीप के इस भारत देश में एक
अत्यन्त विकासमान सभ्य लोग रहते थे.. इनका ज्ञान पुस्तकों से नहीं, उनकी लिखित सामाग्रियों से नहीं
और न उनके पठनीय लेखों से अपितु वहां कि उत्खनित सामाग्रियों से प्राप्त होता है...
एशिया की समकालिक अन्य पुरातन सभ्यताओं मिश्र,
बाबुलोनियाँ आदि में धर्म का वह बहुविधीय स्वरूप हमें
नहीं मिलता न इतना वैज्ञानिक पैठ ही मिलता है जितना हड़प्पा की सभ्यता में... फिलहाल
दुनिया की सबसे पुरानी नगरीय व्यवस्था माने जाने वाले प्राचीन शहर मोहनजोदड़ो पर
नष्ट होने का ख़तरा मंडरा रहा है... पाकिस्तान के सिंध प्रात
में सिंधु नदी के किनारे बसे क़रीब चार हज़ार साल पुराने इस शहर की खोज अभी महज़
100 साल पहले ही हुई थी... यह दुनिया के प्रचीनतम सभ्यताओं में से एक सिंधु घाटी
सभ्यता का एक प्रमुख शहर रहा है... मोहनजोदड़ो योजनाबद्ध तरीके से बनाया गया एक
शानदार शहर था जिसमें अविश्वसनीय तरीके से सारी सुख-सुविधाएं मौजूद थीं... माना
जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के इस शहर में 35,000 लोग रहा करते थे. गौरतलब है कि
इसके छोटे से हिस्से की ही खुदाई की गई है... इसके बड़े हिस्से को अब आप नष्ट होते
हुए देख सकते हैं… दीवारें अपने आधार से खिसक रही हैं... अंडरग्राउंड पानी में
खारापन होने की वजह से ईंटों को नुकसान हो रहा है जिसकी वजह से वहां की दिवारे गिर
रही हैं...यहां कुछ मुहरों पर नृत्य,. संगीत के सामूहिक अवस्था का अंकन हुआ है। लगता है
किसी विशेष उत्सव या पर्व पर इस प्रकार के सामूहिक आमोद-प्रमोद की अवस्था का चलन
था। सामूहिक स्नान के लिए जलकुण्डों का होना सिद्घ करता है कि उस समय पर्व मनाए
जाते थे जहां लोग एक साथ एकत्रित होकर आज की पौराणिक मान्यता की तरह सामाजिक रूप
से स्नान आदि धार्मिक क्रियाएं करते होंगे।
इतनी उन्नत और
आधुनिक सभ्यता के विनाश हो जाने का कोइ स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता...विद्वानों में
भी इसको लेकर अलग-अलग मत हैं...इस सभ्यता का उदय सिंधु
नदी की घाटी में होने के कारण इसे सिंधु सभ्यता नाम से भी जाना जाता हैं...
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