सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

हिमालय की गोद में बसा केदारनाथ

हमेशा से केदारनाथ लाखों योगियों और ईश्वर-प्रेमियों का ठिकाना रहा है.. भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित, हिमालय की गोद में बसा यह एकांत सा कस्बा प्राचीन युग का एक दिलचस्प पवित्र स्थान है.. केदारनाथ के आसपास बर्फ से ढंकी ऐसी पहाड़ियां हैं जो अचरज में डाल देती हैं.. दिव्य दर्शियों के लिए यह सबसे बड़ा आध्यात्मिक स्थानहै.. केदारनाथ में बने इस मंदिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि विक्रम संवत् 1076 से 1099 तक राज करने वाले मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था.. लेकिन कुछ लोगों के मुताबिक यह मंदिर 8वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने बनवाया था। बताया जाता है कि मौजूदा केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे पांडवों ने एक मंदिर बनवाया था, लेकिन वह मंदिर वक्त के थपेड़ों की मार नहीं झेल सका.. 85 फीट ऊंचा, 187 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा इस केदारनाथ मंदिर की दीवारें 12 फीट मोटी है और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई है। मंदिर को 6 फीट ऊंचे चबूतरे पर खड़ा किया गया है.. यह हैरतअंगेज है कि इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर कैसे मंदिर की शक्ल ‍दी गई होगी.. जानकारों का मानना है कि पत्थरों को एक-दूसरे में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया होगा। केदारनाथ तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ तो दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड। यहां न सिर्फ तीन पहाड़ हैं बल्कि पांच ‍नदियों का संगम भी है.. मं‍दाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी.. इन नदियों में से कुछ को काल्पनिक माना जाता है। इस इलाके में मंदाकिनी ही स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है। यहां..सर्दियों में भारी बर्फ और बारिश में जबरदस्त पानी पड़ता है.. उत्‍तराखण्‍ड के चार धामों में से एक, मंदाकिनी नदी के तट पर बसा केदारनाथ मंदिर रूद्रप्रयाग जिले में स्‍थित है.. पंच केदारों में से एक, केदारनाथ मंदिर में शिव के "पृष्‍ठ भाग" की पूजा की जाती है। बद्रीनाथ की यात्रा करने से पूर्व केदारनाथ की यात्रा करना अनिवार्य समझा जाता है.. केदारनाथ सहित नर-नारायण मूर्ति के दर्शन करने से समस्त पापों का नाश होता है.. केदारनाथ मंदिर के अन्‍दर स्थित ज्‍योर्तिलिंग, जो भगवान शिव के बारह ज्‍यार्तिलिंगों में से एक है, यहां का मुख्‍य आकर्षण है। केदारनाथ के निकट दर्शनीय स्‍थल वासुकी ताल, पंच केदार, सोन प्रयाग, गौरी कुण्ड, त्रियुगी नारायण, गुप्तकाशी, ऊखीमठ और अगस्तयमुनि हैं।
देश के सबसे पूज्य माने जाने वाले शिव मंदिरों में से एक है- केदारनाथ मंदिर.. सदियों पुरानी चार धाम की तीर्थयात्रा में भी केदारनाथ को एक प्रमुख तीर्थ के रूप में माना जाता है.. यह ऊर्जा से भरा हुआ ऐसा आध्यात्मिक स्थान है... जहां दुनिया भर से ऐसे-ऐसे योगी पहुंचते हैं, जिनके बारे में आप कभी कल्पना भी नहीं कर सकते.. इन योगियों के यहां आने का यह सिलसिला कई हजार वर्षों से चला आ रहा है.. यह स्थान आध्यात्मिकता और ऊर्जा का अनोखा मिश्रण है.. कहां जाता है हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थना के मुताबिक ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं.. पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे.. इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतर्ध्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच गए.. भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा... तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया.. भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए.. उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया.. उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं.. ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का हिस्सा काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का मंदिर है.. शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथमें, नाभि मदमदेश्वरमें और जटा कल्पेश्वरमें प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है।
केदारनाथका मंदिर 3593 फीट की ऊंचाई पर बना हुआ एक भव्य एवं विशाल मंदिर है। इतनी ऊंचाई पर इस मंदिर को कैसे बनाया गया, इसकी कल्पना आज भी नहीं की जा सकती है.. मंदिर की पूजा श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगोंमें से एक माना जाता है.. प्रात:काल में शिव-पिंड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है.. त्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है.. इस समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है.. उन्हें विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है। भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं.. केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं.. भगवान की पूजाओं के क्रम में प्रात:कालिक पूजा, महाभिषेक पूजा, अभिषेक, लघु रुद्राभिषेक, षोडशोपचार पूजन, अष्टोपचार पूजन, सम्पूर्ण आरती, पाण्डव पूजा, गणेश पूजा, श्री भैरव पूजा, पार्वती जी की पूजा, शिव सहस्त्रनाम प्रमुख हैं.. केदारनाथ जी का मन्दिर आम दर्शनार्थियों के लिए प्रात: 7:00 बजे खुलता है.. दोपहर एक से दो बजे तक विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है.. पुन: शाम 5 बजे जनता के दर्शन हेतु मन्दिर खोला जाता है.. पांचमुख वाली भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके 7:30 बजे से 8:30 बजे तक नियमित आरती होती है.. रात्रि 8:30 बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मन्दिर बन्द कर दिया जाता है.. शीतकाल में केदारघाटी बर्फ से ढंक जाती है.. इसलिए केदारनाथ-मन्दिर के खोलने और बन्द करने का मुहूर्त निकाला जाता है, किन्तु यह सामान्यत: नवम्बर माह की 15 तारीख से पूर्व बन्द हो जाता है और छ: माह बाद अर्थात वैशाखी के बाद कपाट खुलता है.. ऐसी स्थिति में केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को 'उखीमठ में लाया जाता हैं। इस दौरान प्रतिमा की पूजा यहां भी रावल जी करते हैं।
बाबा केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंचकेदार में से एक है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित सबसे ऊँचा ज्योतिर्लिंग यहीं है। मन्दिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। मंदिर के प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मंदिर के गर्भ गृह में नुकीली चट्टान भगवान शिव के सदाशिव रूप में पूजी जाती है। यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर महीने के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए हरिद्वार एवं ऋषिकेश से कई प्रकार के साधन उपलब्ध रहते हैं. चार धामों की यात्रा की शुरुआत प्रमुख रुप से तीर्थ नगरी हरिद्वार से गंगा स्नान के साथ होती है। केदारनाथ की यात्रा की शुरुआत गौरीकुंड से होती है। गौरी कुण्ड के बाद तीव्र ढ़लान है जहां से तीर्थयात्रियों को पैदल आगे जाना होता है. जो तीर्थयात्री पैदल चलने में असमर्थ होते हैं वह पिट्ठू, पालकी अथवा घोड़े पर चढ़कर बाबा केदारनाथ के दरबार तक पहुंचते  हैं. फिर भी बाबा केदारनाथ की एक झलक देखने और उनके दर्शन के लिए हर साल लाखों लोग केदारनाथ धाम आते  हैं। कहा जाता है की केदारनाथ मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा...  साथ ही 2013 के दौरान अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित हुआ। इस ऐतिहासिक मन्दिर का मुख्य हिस्सा और सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहे लेकिन मन्दिर का प्रवेश द्वार और उसके आस-पास का इलाका पूरी तरह तबाह हो गया। फिर भी इस मंदिर को कुछ नहीं हुआइसलिए वैज्ञानिक इस बात से हैरान नहीं है आज भी सैकड़ो में श्रद्धालु बाबा केदारनाथ के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते है इसे बाबा भोले का चमत्कार ही कहेंगे..

बाबा केदारनाथ के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु केदारनाथ धाम खींचे चले आते है तभी तो बाबा केदारनाथ की आरती में काफी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहते है बाबा केदारनाथ जी का श्रृंगार करने के लिए पंचमुखी मूर्तियां हैं। इन्हें हमेशा वस्त्र तथा आभूषणों से विभूषित रखा जाता है। केदारनाथ का मंदिर काफी भव्य है। मंदिर के बाहर देवी पार्वती, पांडव, लक्ष्मी आदि की मूर्तियां विराजमान हैं। मंदिर के नजदीक हंसकुण्ड है जहां पर पितरों की मुक्ति के लिए श्रृद्धालु श्राद्ध आदि का पितृ पूजा करते हैं। मंदिर के दरवाजे पर नन्दी विराजमान हैं जो कि बाबा भोलेनाथ का वाहन है उसकी उपस्थिति इस मंदिर को अनुपम छटा प्रदान करती है। भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं.. केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की कथा के विषय में शिव पुराण में वर्णित है कि नर और नारयण नाम के दो भाईयों ने भगवान शिव की पार्थिव मूर्ति बनाकर उनकी पूजा-ध्यान में लगे रहते थे.. दोनों भाईयों की भक्तिपूर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव इनके समक्ष प्रकट हुए.. भगवान शिव ने इनसे वरदान मांगने के लिए कहा तो जन कल्याण कि भावना से इन्होंने शिव से वरदान मांगा कि वह इस क्षेत्र में जनकल्याण हेतु सदा वर्तमान रहें... इनकी प्रार्थना पर भगवान शंकर ज्योर्तिलिंग के रूप में केदार क्षेत्र में प्रकट हुए... इस स्थान पर आज भी द्रौपदी के साथ पांचो पाण्डवों की पूजा की जाती है.. केदारनाथ का महात्म्य इस बात से सिद्ध होता है कि यहां बहेलिया शिव की पूजा करने से जीवहत्या के पाप से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त हुआ… पाण्डवों को महाभारत के युद्ध में बंधुओं की हत्या का जो पाप लगा था उनसे मुक्ति उन्हें इसी तीर्थ स्थल पर मिली थी. कहा जाता है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन के बिना बद्रीनाथ का दर्शन करता है उसे बद्रीनाथ की यात्रा का पुण्य फल नहीं मिलता है. केदारनाथ पर चढ़ाया गया जल पीने से मनुष्य के कई-कई जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है. जो व्यक्ति केदारनाथ यात्रा करता है उनके पूर्वजों को भी मुक्ति मिल जाती है. 

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